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(१) वर्ण जो कि अपने-अपने वर्ग के अन्त्य वर्ण से मिलकर श्रुति मधुर ध्वनि की सृष्टि किया करते है, अन्य वर्ण से असंयुक्त रेफ और मूर्धन्य णकार भी इस श्रेणी में आते है।
(२) असमस्त रचना (३) अल्पसमासवती रचना (४) मधुर पद योजना 'मूर्धिन वर्गान्त्यवर्णेन युक्ताष्टठडढान्विना रणौ लघू च तद्व्यक्तौ वर्णाः कारणतां गताः अवृत्तिरल्पवृत्तिर्वा मधुरा रचना तथा।"
दूसरा परिगणित गुण 'ओज' है। 'ओज' सहृदय हृदय की वह दीप्ति अथवा प्रज्वलित प्रायता है जिसका स्वरूप चित्त की विस्तृति अथवा उष्णता है। यह ओज, वीर, बीभत्स और रौद्ररस में उत्तरोत्तर प्रकृष्टरूप से विराजमान रहा करता है।
'ओजश्रितस्य विस्ताररूपं दीप्तत्वमुच्यते। वीरबीभत्सरौद्रेषु क्रमेणाधिक्यमस्य तु।।२
काव्य प्रकाशकार मम्मट के अनुसार ओज 'दीप्तिकरण' है दीप्तिरूप नहीं, जैसा की इस पंक्ति से स्पष्ट है:
'दीप्त्याऽत्मविस्तृतेर्हेतुरोजो वीररसस्थितिः"
सा. द. ८/३ पृ. ६४५ सा. द. ८/४ पृ. ४ का. प्र.८/६९