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सत्कार करते है, कुशलमंगल पूछते है तथा उसके आने का कारण भी जानना चाहते है। इसी समय ब्राह्मण श्री कृष्ण को रूक्मिणी का सन्देश सुनाता है रूक्मिणी के इस सनदेश को सुनकर निश्चित समय पर विदर्भ देश मे आ जाते है और पूर्वयोजनानुसार रूक्मिणी को पार्वती के मन्दिर से अपहृत कर लाते है। इस प्रसंग मे दूत द्वारा पूर्व अनुराग के कारण दूतसम्प्रेषण स्पष्ट ही होता है ।
बौद्ध साहित्य मे भी दूत सम्प्रेषण के कई प्रसंग देखने को मिलता है । सर्वप्रथम जो एक कथा मिलती है वह इस प्रकार है कि काशी का एक श्रेष्ठ अपने कलण्डुक नामक दास की खोज मे अपने एक पालतू शुक को भेजता है। शुक दास को खोजकर वापस आकर श्रेष्ठी को उसकी सूचना देता है । '
एक दूसरी कथानुसार एक व्यक्ति शूली के दण्ड को प्राप्त एक काक को अन्तरिक्ष में उड़ते हुए देखकर उसके द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास अपना सन्देश भिजवाता है। वह काक से कहता है -
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कुंतनि जातक में एक ऐसी कथा का वर्णन है का वर्णन है जो कोशलराजा के पास रहता था और सन्देश सम्प्रेषण करता था।
उच्चे सकुण डेमान पत्तयान विहंगम ।
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वज्जासि खोत्वं वामूरूं चिरं खोसा करिस्सति । । '
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एक अन्य स्थल पर एक और कथा मिलती जिसमे उत्तर पाञ्चाल की अत्यन्त रूपवती राजकुमारी पञ्चाल - चण्डी का वर्णन मिलता है। पञ्चाल तथा विदेह देश की राजाओं में गहरी शत्रुता थी । पञ्चाल राजा ने अपने शत्रु को
कलण्डुक जातक, १२७ काम विलाप जातक १९७ कुंनि जातक १४३
जिसमे एक ऐसे पक्षी
के समान राजा का
दूत