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पूछती फिरती है। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के ४६वे अध्याय में भी सन्देश काव्य अथवा दूत काव्य की कुछ रूपरेखा पाई जाती है। कृष्ण जब गोकुल से मथुरा आ जाते है और बहुत दिनों तक गोकुल जाने का उन्हे अवसर नही मिलता है तब वे नन्द और यशोदा के दुःख को दूर करने तथा गापियो को सान्त्वना देने के लिए अपने प्रिय मित्र उद्धव को गोकुल भेजते है। इस प्रकार नन्द और यशोदा के दुःख को दूर कर जब उद्धव मथुरा जाने को उद्यत होते है तब कुछ गोपियाँ उनके रथ को रोककर खड़ी हो जाती हैं। तभी कही से एक भ्रमर आ जाता है गोपिकाऍ उसको श्रीकृष्ण का दूत समझकर उससे कहती है -
मधुप
कितवबन्धो मा स्पृशाङ्घ्रि सपल्याः
कुचविलुलित-माला कुङ्कुमश्मश्रुभिर्वः ।
वहतु मधुपतिस्तन्मानिनीनां प्रसादं
यदुसदसि विडम्बयो यस्य दूतस्त्वमीदृक् ।। '
श्रीमद्भागवत के इस प्रसंग के आधार पर ही श्री रूप गोस्वामी के उद्धव सन्देश तथा माधव कविन्द्र के उद्धवदूत की रचना हुई है। उक्त प्रसंग मे भ्रमर को भी दूत कल्पित किया गया है। अतः यह प्रसंग रूद्र न्याय वाचस्पति के भ्रमर दूत तथा अन्य दूतों का भी आधार है उपर्युक्त प्रसंगो के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत में एक और स्थल पर भी दूत द्वारा सन्देश प्रेषण का कार्य पाया जाता है। रूक्मिणी का विवाह शिशुपाल से निश्चित हो जाता है किन्तु रूक्मिणी इस विवाह सम्बन्ध को नहीं चाहती हैं, वह श्री कृष्ण से विवाह करना चाहती हैं इसी प्रसंग में विदर्भ से द्वारका को दूत के रूप में एक ब्राह्मण भेजा जाता है।' दूत के पहुँचने पर कृष्ण जी उसका स्वागत
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श्रीमद्भागवत १० / ४७/१२
श्रीमद्भागवत १० / ५२/२१-२७