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कृष्ण की पत्नियाँ जलक्रीड़ा में निपुण है। वे स्वर्णिम पिचकारियो को सुशोभित जलों के रंगों से भरकर मुस्कुराते हुए उन भगवान श्री नेमि को सराबोर कर देती है।
ये रमणीयाँ अपने देवर से अत्याधिक प्रेम करती है। वे सहस्रदल कमल पुष्प को तोड़कर श्री नेमि के कानों में पहना देती है क्योंकि वे नहीं चाहती कि यह कमल परास्त होकर अन्य के मुखकमल की सेवा करे। एक श्री कृष्ण पत्नी ने श्वेत कमलो को यह कहकर श्री नेमिके गले में पहना दिया कि 'एक तू मेरे देवर के निर्मल नेत्रों से स्पर्धा कर रहा है।' रूक्मिणी तो श्री नेमि को साक्षात् कामदेव कहती है।
जैनमेघदूतम् में जैन द्वारा आठ मूल कर्म प्रकृतियों की तुलना कृष्ण की आठ पटरानियो से की गई है। उसमे सर्वप्रथम रूक्मिणी का वर्णन मिलता है। जो बहुत विनम्र तथा हँसमुख है। वे पिदुषी भी है। वे श्री नेमि को पाणिग्रहण हेतु बाध्य करती है। उनकी प्रशंसा करती हुई कहती है कि आप हमारी बातो को पृथ्वी की तरह सहन करते है, तभी तो हम निःसंकोच बात कर लेती हैं। वे श्री नेमि की सुन्दरता को स्त्री के बिना व्यर्थ बताती है ।
रूपं - -
- स्त्रीरभूमिः ३/८
अर्थात् हे देवर काम तुम्हारे रूप को देखकर लज्जित हो गया अर्थात् छुप गया। इन्द्र ने आपके लावण्य को देखने के लिए हजारों नेत्र धारण किये और वन श्री ने तो उन दोनों (रूप और लावण्य) के उत्कर्ष को और भी सजा दिया है जैसे शरद ऋतु, चन्द्र और सूर्य शोभा व्यर्थ है।
दूसरी पटरानी का नाम जाम्बवती है जो बहुत तर्क पूर्ण वाक्य श्री नेमि के समक्ष प्रस्तुत करती है और उनसे प्रश्न करती है 'हे देवर। इस बात को आप क्यों नहीं सोचते कि आदिदेव जैसे मोक्ष कार्य के भी प्रवर्तक है। तो आप उस दैवी मार्ग को छोड़ने वाले कोई नवीन सर्वज्ञ हैं क्या?