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उपर्युक्त श्लोको से ज्ञात होता है कि राजीमती अत्यन्त सुन्दरी है, एक श्लोक से यह भी ज्ञात होता है कि वह गौरवर्ण की है।
आचार्य मेरुतुङ्ग ने राजीमती के बाह्य शारीरिक सौन्दर्य के विषय में रूचि न लेकर उसके आन्तरिक सौन्दर्य को निखारा हैं। इनके काव्य की नायिका अत्यन्त भावुक दृढानुरागिणी तथा आदर्श रमणी है। इसके साथ बुद्धिमती एवं विदुषी भी है।
राजीमती अत्यधिक भावुक है तभी तो वे सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं को अत्यन्त भावुकता के साथ देखती है और उसे मेघ से वर्णन करती है। एक स्थान पर वे वर्णन करती है कि संसार में सभी शोक से विमुक्त हो जाते हैं परन्तु मै हमेशा के लिए शोक पात्र हो गई हूँ।
क्रोकी शोकाद्वसतिविगमे ........ त्वाभवं भोः। ४/९
अर्थात हे मेध! रात के बीतने पर चक्रवाकी दिन के अन्त मे चकोरी तथा शीत एवं ग्रीष्मऋतु के समाप्त होने पर वर्षाकाल में मयूरी शोक से मुक्त होती है। परन्तु मेरे स्वामी श्री रेमि ने मुझे पूर्ण यौवन मे उसी प्रकार त्याग दिया जैसे सांप केचुल को छोड़ देता है। अब मैं जन्म भर के लिए उसी प्रकार शोक का पात्र हो गई हूँ जिस प्रकार तालाब हमेशा के लिए जल का पात्र हो जाता है।
एक स्थान पर वे अपने हृदय को धिक्कारते हुए कहती है कि 'हे हृदय तुम दो टुकड़े क्यों नहीं हो जाते हो।
वह अत्यन्त दृढानुरागिणी है सखियों द्वारा समझाये जाने पर कि अन्य किसी गुण सम्पन्न राजकुमार से तो तुम्हारी शादी हो ही जायेगी। चिन्ता मत करे। सखियों की इस प्रकार की वाणी उसे जले पर नमक छिडकने जैसी लगती है। अतः वे उन्हीं के समक्ष प्रतिज्ञा कर लेती है कि मैं योगिनी की