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आप आनन्द मग्न है। वह गाढ भोगैषणा वाला है और आप निष्काम है वह मूढ है आप विज्ञ शिरोमण है वह तपित है आप शीतलात्मा है। वह स्पष्ट ही राग युक्त है और आप विरक्त है। अतः आधार और आधेय मात्र औपचारिक नही स्पष्ट भेद है।
क्लेशाविष्टे प्रमुदितमतिर्दीर्घतृष्णे वितृष्णे मूढे मूढेतरपरिवृढस्तापिते निर्वृतात्मा। त्यक्तं रक्ते वसति हृदये चेद्विरक्तोममेशाऽऽधाराधेये तदुपचरिते केन भेदान्तरेण।।'
आध्यात्मिकता का परिचय निम्नलिखित मे मिलता है - राजीमती श्री नेमि को समझाती है कि आप जिस मुक्ति कान्ता को अपनाना चाहते है वह निर्गुणा है, अकुलीना है, अदर्शनीया है, गोत्र और शरीर का नाश करने वाली है तथा राग रहित है, इस प्रकार की मुक्ति के प्रबल इच्छुक आप केवल निवृत्ति इस नाम से ही उसमें आसक्त होकर यदि सुन्दर ललनाओं को त्याग देते हैं तो इस संसार में आपके लिए कोई स्थान नही है अर्थात् आप इस संसार मे रहने योग्य नहीं है।'
राजीमती को भाषा का भी अच्छा ज्ञान हैं अपने सन्देश में वह स्थानस्थान पर सूक्तियों लोकोक्तियों का प्रयोग करती है, राजीमती मेघ से कहती है कि श्री नेमि और श्रीकृष्ण का प्रमदवन में आगमन होनेपर ग्रीष्म ऋतु दोनों का स्वागत करता है। इसके बाद गर्जना करते हुए हाथी वाले श्रीकृष्ण ने फले हुए वृक्षों को देखकर पीले पीले पके हुए रसीले बडे बडे फलों को ऐसे तोड
जैनमेघदूतम् ४/३२ जैनमेघदूतम् ४/२५,२६