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अर्थात् वर्षाकाल मे स्वभाव से ईर्ष्यालु विरहिणीस्त्रियाँ अपने शोक को उत्पन्न करने वाले मेघ से जो ईर्ष्या करती है वह ठीक ही है। (क्यो कि) मेघ के जो नीलतुल्य श्यामवर्ण वाला होने पर विरहिणी स्त्रियाँ भी मुख को श्याम बना लेती है और जब वह मेघ बरसता है तो विरहिणी स्त्रियाँ भी अश्रु बरसाती है जब वह मेघ गरजता है तो वे भी चातुर्य पूर्ण कटु विलाप करती है और जब मेघ बिजली चमकता है तो वे भी उष्णनिःश्वास छोड़ती है।
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अन्यत्र स्थलों पर राजीमती ने अति मनोवैज्ञानिक ढंग से नावाम्बुद और कृष्ण के कृष्णत्व को प्रस्तुत करती है। उसका कहना है कि देशस्वामी कृष्ण और नवाम्बुद ये दोनों ही अपने जिस अर्जित पाप से कृष्णत्व को प्राप्त हुए है उसे मै जानती हूँ। उनमें से एक यह कि देश स्वामी कृष्ण तो हमारे पति के द्वारा की गई न्याय की हत्या का निषेध न करने के कारण कृष्णत्व को प्राप्त हुए है और श्री नेमि कृष्ण के अनुज थे ही दूसरा यह मेघ गहन वियोग मे अग्नि तुल्य सन्ताप पहुँचाने के कारण कृष्णत्व को प्राप्त हुआ है
कृष्णों देशप्रभुरभिनवश्चाम्बुदः
विप्रयोगेऽग्निसर्गात् ।'
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राजीमती व्यवहार कुशल भी है। वह अचेतन मेघ से वैसा ही व्यवहार करती है जैसा एक चेतन प्राणी के साथ किया जाता है इसे भली भाँति ज्ञात है कि किसी से कार्य सम्पादित कराने से पूर्व सर्वप्रथम उससे धनिष्टता स्थापित करनी चाहिए। अतः वे मेघ से घनिष्टता स्थापित करती है अन्त में मेघ से अपना सन्देश श्री नेमि के पास पहुँचाने के लिए प्रार्थना करती है ।
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राजीमती मेघ को अपने स्वामी से सन्देश कहने के लिए उचित समय बताती है वे कहती हैं 'है धीमन । जब श्री नेमि भगवान् समजन्य सुख रस के पान से पूर्ण होकर कुछ-कुछ आँखे खोले तभी तुम उनके चरण कमलों में भ्रमर लीला करते हुए शान्त एवं सौम्य होकर मधुर वचनों से सन्देश कहना।
जैनमेघदूतम् १/५