________________
(६७ )
के नाम से छाप दूंगा। ( पुनः हँसकर ) उसे छापना इसलिए भो
आवश्यक है कि कहीं तुम मुझे पुरुषवर्ग का हिमायती न समझ बैठा। परंतु तुम्हारे नाम से नहीं छाप महूँगा ; इसके लिए क्षमा करना । तुम स्वयं समझदार हो।
___ मालती आपका संपादक का जोवन' शोक लेख छप कर आया है आज !
राजीव ( कांति की ओर देखकर ) यों ही लिख दिया था।
निरंजना और 'पारिवारिक शांति' वाला ?
राजीव उसमें भी मेरे विचार हैं; दूसरों के विचार भिन्न हो सकते हैं।
निरंजना मैं आशय नहीं समझी आपका।
राजीव ऐसे विषयों पर हमारे अनुभव एकांगी होते हैं, यही एक दोष है। सबकी समस्याएँ बड़ी जटिल होती हैं। इसलिए इन विषयों पर लिखते समय उदार रहकर ही हम सफलता पा सकते हैं।