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शिष्यवर प्रेमनारायण टंडन सफल पालोचक ही नही है, पापन ललित साहित्य का निर्माण भी किया है । प्रस्तुत पुस्तक में उनके चार एकांकी नाटक संगृहीत है। पहला 'कर्मपथ' अतुकांत पद्य में है। ऋग्वैदिक गाथा का एक छोटा सा अंशले कर सुरुगुरु द्वारा अपने पुत्र को आदेश देने के बहाने कुशल लेखक ने भारतीय नवयुवकों को कर्मपथ पर चलने के लिए ललकारा है
सुनो करुण क्रंदन अपनी माताओं का, आर्तनाद . हृदयविदारक दलितों का ; बहते देख चुके तो अनेक बार आँसू खून के ; अब तो उठो, कर्तव्य निज सोचो स्वदेश के प्रति तुम, माता ताक रही है प्राशा हो उसकी, तुम ही आशा के प्राण हो; सँदेश है मेरा तुमसे, नवयुवकों से
निज स्वदेश-प्रासाद के प्रमुख स्तम्भों से । इस ललकार के पहले सुरुगुरु अपने पुत्र को इस कर्मपथ का संकेत जी कहते हैं
जाओ तुम प्रात ही पास श्री शुक्राचार्य के दानवों के गुरुवर हैं जो अति विज्ञ हैं