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ईसा
माता, क्यों दुखी होती हो तुम इतना ! क्या इस शरीर के लिए ? यह तो नाश होता ही एक दिन ; तब दुख की क्या बात है ? और फिर इसकी बलि दी जा रही है देश और जाति की सेवा के नाम पर - अतएव मुझे संतोष है कि यह निरुद्देश्य नष्ट नहीं होगा । मैंने शक्ति भर अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है ; तुम भी सहर्ष विदा करो मुझे ।
मरियम
बेटा, बेटा, माता को यह आत्मा गौरव नहीं चाहती, यश नहीं चाहती। उद्देश्य और कर्तव्य को ऊँची बातें मैं समझ नहीं पा रही हूँ | मेरा कलेजा टुकड़े-टुकड़े हो रहा है । ( सेनानायक से ) आप के पास भी पिता का हृदय है; माता को ममता का अनुभव आप भी कर सकते हैं । आप से मैं भिक्षा माँगती हूँ कि मुझसे मेरे लाल को मत छीनें ।
ईसा
माता, माता, मुझे भी तो आज तुम्हारे चरणों से अलग होना पड़ रहा है, अब मैं इनकी रज अपने मस्तक पर चढ़ाकर गर्व से इठला न सकूँगा । इतनी परवशता में भी देखो, मैं हँस रहा हूँ । माता, तुम भी सहर्ष मुझे विदा करो। तुम्हारे आँसू मोह का परदा कहीं मेरे सामने न डाल दें ; धैर्य धर कर मुझे आशीर्वाद दो, बल दो कि मैं अपने निश्चय