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________________ ( १२१ ) . ईसा शांत ! इतनी जल्दी भूल गये मेरो शिक्षा ! तुम्हारा आवेश मेरा मस्तक नीचा करा देगा। (सेनानायक की ओर संकेत करके) ये सम्राट के सेवक है। आज्ञापालन करना इनका कर्तव्य है; इसका इन्हें वेतन मिलता है। अतएव ये भी प्रेम के पात्र हैं। (सेना-नायक से) मैं प्रस्तुत हूँ। (सेनानायक आगे बढ कर हाथ-पैर बांधता है। दोनों शिष्य कुछ क्रोधित होते हैं ; ईसा उन्हें संकेत से शांत करते हैं ; सभी चलने लगते हैं, तभी शीघ्रता से माता मरियम का प्रवेश, ईसा को देखते ही उससे लिपट जाती है ) मरियम मेरे लाल ! यह क्या देख रही हूँ मैं ? (सेनानायक से) भैया, क्यों बाँध रक्खा है इसको तुमने ? क्या अपराध है इसका ? मेरा बेटा किती का राज्य नहीं चाहता, दोन-दुखियों की सेवा करता है, रूखी-सूखी खा लेता है। तब क्यों इसे बाँधे लिये ना रहे हो तुम ? सेनानायक अपने पुत्र से हो पूछ लीजिए उत्तर इसका । मरियम बोलो बेटा, कौन सा अपराध किया है तुमने ? किसका अपराध किया है ? मैं उससे क्षमा माँग लूंगी।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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