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ईसा हाँ, मित्र, सखा, भाई, शिष्य जो चाहो कह लो ! परन्तु उससे न तुम अप्रसन्न होना, न उसपर क्रोध करना और न तिरस्कार ही करना। वह बेचारा दया का पात्र है। प्रेम का भूखा है । उसपर तुम दया करना, प्रेम करना। बोलो ! मेरी इतनी बात मान सकोगे तुम ?
पहला ऐसे को करनी जा सुनेगा वही धिक्कारेगा ओर..........!
दूसरा .. और आज ही क्या, जब तक यह संसार रहेगा, भाई-चारे या गुरू-शिष्य का संबंध रहेगा तब तक उसका नाम तिरस्कार से लिया जायगा।
भाई, मैं तुम्हारी बात पूछ रहा हूँ। मेरे हृदय में उस व्यक्ति के प्रति जो ममता पहले थी उससे आज बहुत अधिक है, इस पर विश्वास रखो । इसी प्रकार मैं चाहता हूँ कि मेरा प्रत्येक मित्र उसका इसी प्रकार आदर-सत्कार करे जैसा अब तक करता रहा है।
दूसरा क्षमा किया फिर हमने उसको ।
ईसा भाई, क्षमा करने का अधिकार मनुष्य को नहीं है, प्रेम