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चाहिए। यह एकांकी पढ़कर मुझे सुदर्शन-कृत 'कवि की स्त्री' की याद आ गयी । कवि की स्त्री पतित हो जाती है, परंतु इस एकांकी में लेखक की पत्नी अपनी मालती और निरंजना जैसी सखियों के उद्योग से बच जाती है । वह अपने पति का महत्व समझने लगती है
रेशमी साड़ी का मूल्य मैं समझ गई हूँ, मुझे अब खद्दर की साड़ी ही ला देना । (हाथ जोड़कर सजल नेत्र) मेरी अब तक की भूल के लिए क्षमा करो।
अंतिम एकांकी में ईसा भारतीय गुरु का मानवीय संदेश लेकर उसका अपनी जन्ममूमि में प्रचार करते दिखाये गये है। ईसा का तो एक शिष्य उन्हे क्रास तक पहुँचाता है, परंतु वह उसे भी क्षमा करते है और क्रास का दृश्य दिखान के पहले यवविका गिर जाती है । बेचन शर्मा 'उग्र' का 'महात्मा ईसा' उनकी स्थायी साहित्यिक कृति है। परंतु उसका अभिनय तीन-चार घंटे से कम में समाप्त नहीं होता। इस एकांकी का अभिनय एक घंटे के भीतर समाप्त हो सकता है । ईसाई विद्यालयों में हो नही, अन्य विद्यालयों में भी इसके अभिनय से बालकों का मनोरंजन तो होगा ही, उससे वे उस पाठ की पुनरावृत्ति भी कर सकेंगे जिसे आधुनिक काल में सक्रिय रूप में महात्मा गाँधी ने हम दिया है।
प्रेमनारायण जी ऐसे ही, इनसे भी अच्छे, एकांकी नाटक लिख सके , यही मेरी शुभ कामना है ।
-कालिदास कपूर