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________________ -[४०]वेड़ियां. स्वयं तयार करता है। अपने कारनामों से अपने (भलाई, बुराई) के बीज बो कर सुख दुख की खेती तयार करता है और फिर उनके अच्छे पुरे फल उसको खाने पड़ते हैं। अपने ही उद्योग से जीव देव बन सकता है और अपने ही उद्योग से नरक के दुख कमा सकता है तथा अपने ही उद्योग से कर्म जंजीर को तोड़ कर हमेशा के लिये स्वतन्त्र (पूर्ण मुक्त) भी हो सकता है। परमात्मा के शुद्ध ज्ञान, शान्ति, निर्विकार आदि गुणों को तथा उसके स्वरूपको अपना आदर्श बनाकर जीव जब भक्ति स्तुति, पूजा करके वैसा विकास अपनी आत्मा में करने की कोशिश करता है तदनुसार शान्ति, क्षमा, सच्चे ज्ञान की कला उसमें प्रगट होती जाती है। इस.आदर्श के तौर पर परमात्मा जीव की सुख शान्ति मिलने में सहायता अवश्य करता है जैसे कि बलवान बनने के लिये किसी पहलवान का इतिहास पढ़ना, कहानी सुनना या चित्र ( तसवीर ) देखना आदि मदद पहुंचाता है। इसके सिवाय परमात्मा स्वयं किसी को नरक, स्वर्ग नहीं भेजा करता । व्यवहार में वैसे यों कह दिया करते हैं कि परमात्मा की कृपा से हमको सुख मिला किन्तु इसका मतलब यो समझना चाहिये कि हमने परमात्मा को आदर्श (Ideal ) नान कर शान्त, क्षमा शील, अच्छे गुणों के प्रेमी बनने की कोशिश की जिससे शुभ कर्म (अच्छा भाग्य ) पैदा किया और उस कर्म के कारण हम को सुख मिला । जैसे बिजली के
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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