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________________ -[१६]आत्मा की वह ज्ञान शक्ति प्रगट नहीं होने पाती। जिस समय कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य के पढ़ने लिखने में रुकावट डालता है, पुस्तकों का और पढ़ाने सिखाने वाले गुरू का अपमान करता है, अपनी विद्या का अभिमान करता है तथा इसी प्रकार के और भी ऐसे अनुचित कार्य करता है जिससे दूसरे के या अपने ज्ञान बढ़ने में रुकावट पैदा हो तो उस समय उसके जो कार्माण पुद्गल आ कर कर्म बनता है उसमें उसकी ज्ञानशक्ति को दबाने की तासीर पड़ती है। यदि कोई पुरुष अपनी अच्छी नीयत से यह उद्योग करे कि सब कोई पढ़ लिख कर विद्वान बने, कोई मूर्ख न रहे तो उस समय की उसकी उस कोशिश से उसका ज्ञानावरण कर्म ढीला हो जाता है, उसकी ज्ञानशक्ति अधिक प्रगट होती है। आज हम जो अपनी आंखों से किसी को मूर्ख, किसीको विद्वान, किसी को बुद्धिमान और किसी को बुद्धिशून्य देखते हैं, उसका कारण ऊपर कहे हुए दो तरह के कार्य ही हैं। २-दर्शनावरण कर्म वह है जो कि आत्माके दर्शन गुण को पूरा प्रगट न होने दे। दर्शन गुण आत्मा का ज्ञान से मिलता जुलता बहुत सूक्ष्म गुण होता है जो कि ज्ञान के पहले हुआ करता है। जब कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य के दर्शन गुण में रुकावट - डालता है, दूसरे की आंखें खराब करता है, अन्धे मनुष्यों का ___ खौल उड़ाता है इत्यादि, उस समय उसके दर्शनावरण
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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