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________________ -[४] आते, बहुत से खुर्दबीन से दीख जाते हैं और बहुत से स्थूल स्कन्ध हमको साफ दिखाई देते हैं। जगत में जितना भी कुछ दिखाई देता है या दिखाई दे सकता है वह पुद्गल स्कन्ध है। कपड़ा, कागज, मेज, कुर्सी, जमीन, पानी, आग, हवा, लकड़ी पत्थर आदि यहां तक कि हमारा शरीर भी पदल है । जीवित शरीर, हरे पेड़, पानी आदि के भीतर जीव होता है किन्तु वह शरीर, लकड़ी, पानी आदि जड़ पुद्गल से ही बने जीव जो जानता समझता, विचारता है सुख का अनुभव करता है वे ज्ञान, सुख आदि गुण जीव के अपने स्वाभाविक (कुदर्ती) गुण हैं। इस बात को संक्षेप से इस तरह मालूम किया जा सकता है सुख जीव जो किसी समय सुख का अनुभव करता है, वह सुख क्या है ? कहां से आता है ? और रहता कहां है? इन बातों का विचार और निर्णय (फैसला) हमको जीव के विषय में बहुत कुछ बतला देता है। देखिये-बहुत से मनुष्यों को पान खाने से आनंद मिलता है। अब विचार कीजिये कि क्या आनन्द पान के भीतर रक्खा हुआ है जो कि उसको मुख में रखते ही प्रगट हो जाता है। आपको उत्तर मिलेगा 'नहीं' क्योंकि यदि पान के भीतर सुख जमा होता तो उसे खाने पर सब किसी को सुख आनन्द मिलता, किन्तु देखा जाता है कि
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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