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सर्वोचम दोहले हुए वे सब पूर्ण होजाने बाद उस त्रिशलादेवी का चित्र प्रसन्न होजाने से गर्भ के रक्षण में स्थिर चित्त होकर सुख से आश्रय लेती हैं सुख से सोनी है सुख से खड़ी होती है सुख से बैठती हैं सुख से शय्या में लौटती है मुख से भूमि पर पैर बरती है और गर्म का अच्छी तरह से रक्षण करती है.
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं पढमे माझे दुबे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चिचसुद्धम्स तेरसीदिवसेणं नवराहं मासाएं बहुपडिपुराणं चट्टमाणं राइंद्रियाणं विक्कंताणं उचट्ठाए गएसु गहसु पढमे चंदजोए सोमासु दिमासु वितिमिरासु विसुद्धासु जड़एसु सव्वसउणेसु पायाहिणाणुकूलंसि भूमिसपिसि मारुयंसि पवायंसि निष्फन्नमेइणीयंसि कालसि पमुझ्यपक्की लिए जणवएसु पुव्वरत्तावरतकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएवं आरुग्गा रुगं दारयं पयाया ॥ ६६ ॥
वो समय वो काल श्रीभगवान् महावीर ग्रीष्म ऋतु पहिला मास दूसरा पत्र चैत्र सुदी त्रयोदसी नवमास पूरे होने बाद साडे सात दिन जाने बाद उच्च स्थान में ग्रह आने पर चंद्र नचत्र उत्तर फाल्गुनी का योग आने पर दिशाओं में सौम्यता होजाने पर अन्यकार दूर होने पर धूल वगैरह तोफान से रहित, पक्षिओं से जय जयाख निकलने पर सर्वत्र दृष्टि हवा की अनुकूलता अनाज के खतर सर्वत्र भरे हुए थे और पृथ्वी को नमस्कार प्रदक्षिणा करने की तरह पवन चल रहा था सब लोग मुखी दीखते थे ऐसे उत्तम मुहूर्त नक्षत्र योग आनंद के समय पर मध्य रात्रि में भगवान के जन्म कुंडली में उच्च ग्रह गये क्योंकि तीन ग्रह उच्च के हो तो राजा, पांच ग्रह से वासुदेव छः ग्रह उच्च हो तो • चक्रवर्ती और सान हो तो तीर्थकर पढ़ पाता है.
तीर्थंकर महावीर प्रभु का ग्रह स्थान ।
सूर्य मेश राशि का, चन्द्र वृषभ राशि का मंगल मकर राशि का, बुध बृहस्पति कर्क राशि का शुक्र मीन राशि का, शनि तुला राशि का
कन्या का
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