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... स्त्रियों के लिये प्रसंगानुसार हित शिक्षा कहत है:-वायु पिच कफ की वृद्धि होत्र ऐमा याहार नहीं खाना गर्भ मालूम पहने बाद ब्रह्मचर्य पालना चाहिये नहीं तो गर्भ को हानि होती है, दिनको नींद नहीं लेनी आंख में अंजन नहीं डालना, रोना नहीं, बहुत बोलना नहीं, बहुत हंसना नहीं, तेल से मर्दन कराना नहीं, पहुत स्नान नहीं करना नख नहीं कटाना बहुत कथाएं नहीं सुननी, जल्दी चलना नहीं, अग्नि के ताप में नहीं बैठना क्योंकि वैद्यक शास्त्र में कहा है कि जो गर्भवती दिन को सोवे तो बच्चा बहुत निद्रा लेने वाला होता है, स्त्री अंजन करे तो अन्धा होवे, तेल मर्दन से बच्चा कोह रोग वाला होवे, नख उतराने से नख रहित अर्थात् हीन नख वाला होता है. रोने से यांख का रोगी बच्चा होता है. नोड़ने से चपल लड़का होता है अथवा गर्भपात होजाता है, स्त्री के इंसने से बालक के जीभ होठ दांत काले होते हैं, बहुत बोलने से लड़का मुखर (बहुन बोलने वाला ) होता है बहुत कथा सुनने से बहग लड़का होना है, पंखा वगैरह से पवन खाने से बालक . शून्य होता है. तीखे भोजन से बालक का मुख बास मारता है. कहुए भोजन से बालक दुर्वल होता है कसायला भोजन से उदानवर्त वायु का रोग अथवा नेत्र रोगी होता है. ग्वट्ट भोजन से रक्त पित्त होये मीठे भोजन से बालक मूर्ख होता है. खारे (लवण जिसमें अधिक हो ) भोजन से वालक को सफेद बाल शीघ्र आते हैं अथवा बहरा होता है. ठंडे भाजन से वायु गंगी होवे उष्ण भोजन से बालक निर्बल होता है पथुन (पुरुष संग से, दोड़ने से पेट मसलने से, मोरी उल्लंघन करने मे ऊंची नीची जमीन पर सोने से नीसरणी उपर चढ़ने से, अस्थिर (ऊकडा ) श्रासन पर बैंठन स उपवास करने मे उलटी ( वमन से )वा जुलाब लेने से गर्भ का नाश वा गर्भ को हीनता होती है.
माता के दाहले। त्रिगला रानी को जो दोहले उत्पन्न हुए वे सब उत्तम थे वे सब पूरे किये और ये भी इच्छानुमार पूरे किये जमे कि सुपात्र का दान देना, स्वधर्मी का पोपण करना, पृथी में अपने द्रव्य से लोगों को ऋण मुक्त करना, धर्मशाला अनाना, जीवों को अभरदान देना, याचकों को इन्टिन टान देना टानमाला पनाना, बादलों की जुबाना, तीर्थयात्रा करना, उत्तम ध्यान करना वनर