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(७३ ) पाह सन्निवेसेसु सिंघाडएसु वा तिएसु वा चउकेसु वा चचरसु वा चउम्मुहेसु वा महापहेसु वा गामहाणेसु वा नगरहाणेसु वा गामणिद्धमणस् वा नगरनिङमणेस वा प्रावणेस वा देवकुलेसु वा सभासु वा पवासु वा पारामेसु वा उज्जाणेसु वा वणेसु वा वणसंडेसु वा सुसाणसुन्नागारागिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवणगिहेसु वा सनिक्खित्ताई चिट्ठति, ताई सिद्धस्थरायभवणंसि साहरांति ॥८॥
महावीर प्रभु निसदिन से त्रिशला देवी के उदर में आये उसदिन से उन के पिता सिद्धार्थ राजा के कुल में इंद्र महाराज की आजा से कुबेर तोगपाल तिर्यन जंभक देव द्वारा स्वामी रहिन धन के देर जो पूर्व में किसी ने कहां भी स्थापन किये है वे बहुत धन को मंगाकर रखावे जो धन का स्वामी मरगया हो, धन स्थापन करने वाले मरगये हो उनके हकदार गोत्री भी मरगये हो स्वामी का कोई भी रहा न हो ढालने वाला का भी कोई न रहा हो गोत्री के कुनवा का भी कोई न रहा हो ऐसा निवंशों का धन जिस जगह पर हो वहां से लाकर तिर्यक जंभक देव सिद्धार्थ राजा के घर में रखे.
जगह के नाम । गांव नगर खा ( छोटा गांव ) कर्बट ( ) मंडप द्रोण मुस (नंदर ) पट्टण, मसाण स्थान, संबाह ( सला) मंनिवेश (प) वगरह जगह पर से अथवा सिंबाटक ( त्रिकोण स्थान ) में अथवा नीन रस्ते जहां मिले यहां चौक में, जहां बहुत रस्ने मिल वहां, चार मुख वाला स्थान में, अथवा राजमार्ग से, गांव स्थान नगर स्थान से, नगर का पानी जाने का रास्ते से, दुकानों से, मंदिरों से, सभा स्थान मे, पानी पाने की जगह से, आगम से, उद्यान से, वन से, वनखंड से, श्मशान से, फूटे हटे घरों मे, गिरि गुफा, पर्यन के घर, शांति घर वगैरह अनेक स्थान जहां रिलकुल वस्ती न हो वहां से धन उठाकर लाफर रखने लगे.
जं रयणिं च णं समणे भगवं. महावीरे नायकुलंमि.सा.