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ज्योतिषियों के जाने बाद राजा खड़ा होकर त्रिशलादेवी के पास आकर बोले हे देवानुभिये ! ज्योतिषियों ने जो कहा है कि ३० स्वप्न उत्तम है और उसमें से १४ स्वप्न तीर्थंकर की माता तीर्थंकर के गर्भ में आने बाद देखती है और पीछे जागृत होती है वो सब बातें तेने सुनी है इसलिये तेरे को धर्म चक्र वर्ती तीर्थंकर पुत्र रत्न होगा.
तणं सा तिसला खत्तियाणी एचमहं सुच्चा निसम्म हट्ठतु जाव- हयहिया, करर्यलजाव ते सुमिणे सम्मं पडिच्छन् ॥ ८६ ॥
पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं ररणा अम्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयण भत्तिचित्तायो भद्दा सणाद्यो ऋभुट्ठित्ता चतुरियं अचवलं असंभताए अविलंविधाए रायहंगसरिसीए गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुविद्या ॥ ८७ ॥
त्रिशलारानी उन स्वप्नों के उत्तम फल सुनकर प्रसन्न चित होकर हृदय में फिर से धारकर सिद्धार्थ राजा की आज्ञा लेकर मणि सुवर्ण रत्नों से बना हुआ भद्रासन से उठकर अत्वरित, अचपल असंभ्रांत अविलंब राज हंसी की चाल से चलकर अपने वाम भवन में गई ( और आनंद से दिन व्यतीत करने लगी )
जप्पभिड़ं चणं समणे भगवं महावीरे तंसि नायकुलंसि साहरिए, तप्पभिड़ च णं वहवे वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा मुक्कवयणं से जाई इमाई पुरापोराणाई महानिहागाई भवंति, तंजहा पहीण सामिया पहीणसेउचाई पही गुत्तागाराई, उच्छिन्न सामिचाई उच्छिन्न से उच्चाई उच्छिन्नगुतागाराडं गामागरनगरखेडकञ्चडमडव दोष मुहपट्टणासमसं