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एवं खलु देवाणुपिया ! अज तिमला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि जाव सुत्तजागरा चोहोरमाणी २ इमे एयारूवे उराले चउदस महासुमिये पासित्ता णं पडिबुद्धा ॥ ७० ॥
हे ज्योतिषी महाराज ! आज हमारी राणी ने सुख शय्या में सोते हुने थोड़ी निद्रा लेते हुवे १४ चवदह बड़े स्वप्न देखे हैं और फिर पूर्णतया जागृत हुई.
तंजा, गयगाहा - तं एए सिं चउदसरहं महासुमियाणं देवाणुपिया ! उरालाएं के मन्ने कल्लाऐ फलवित्तिविसेसे भविस्सह ? ॥ ७१ ॥
हाथी से सिंह तक के चवदह स्वप्न सुनाकर राजा बोला कि बतलाइये इन उत्तम स्वप्नों का क्या फल होगा.
तणं ते सुमिएलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एयमहं सोचा निसम्म हट्ठट्ठ जाव-हयहियया. ते सुमिऐ योगिरहंति, योगिरिहत्ता ईहं पविसंति, पविसित्ता यन्नमन्त्रेण सद्धिं संचालेंति, संचालित ( तेसिं सुमिणाएं लड्डा गहिया पुच्छिया विणिच्छिया अभिगयहा सिद्धत्थस्स रणो पुरो सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा २ सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ ७२ ॥
राजा के मुख से स्वप्नों का वृत्तान्त सुनकर प्रसन्न होने व सर्व ज्योनिपियों ने अपने २ मनमें फलों का विचार किया और फिर परस्पर फलों के सम्बन्ध में वार्तालाप कर कर सर्व एकमत होकर फल का निश्रय कर पूर्व मं जिसको नायक बनाया है वो निःशंक होकर खड़ा होकर बोला.
स्वमों का फल |
हे राजन सुनिये स्वप्न दिखने के नव कारण है १ अनुभव से, २ सुनने
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