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(५६) पसत्याहिं मंगल्लाहि धम्मियाहिं लट्ठाहिं कहाहिं सुमिणजागरिनं जागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ ।। ५६ ॥ __मैंने जो उत्तम प्रधान, मांगलिक स्वप्न देखे हैं अब यदि सोऊं और फिर कोई पाप स्वप्न देखने में श्रावे तो (नियमानुसार) उन अच्छे स्वप्नों का उत्तम फल नाश होजावे इसलिये मुझे अब नींद न लेना चाहिये. वरञ्च देव गुरुजन इत्यादि पुण्यात्मा पुरुपों की उत्तम, कल्याणकारी, धार्मिक, श्रेष्ट कथाओं सुनकर शेष रात्री व्यतीत करना चाहिये ऐसा विचार कर रात्री जागृत अवस्था में गुजारी.
तएणं सिद्धत्थे खत्तिए पञ्चसकालममयंसि कोडंविअपुरिसे सदावेइ, सहावित्ता एवं वयासी ॥ ५७ ॥
सिद्धार्थ राजाने कुछ रात्री वाकी रही तब अर्थात् प्रभातकाल में अपने कुनबे के सेवकों को बुलाकर यह आना दी.
खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अञ्ज सविससं वाहिरिशं उवट्ठाणमालं गंधोदयसित्तं सुइअसंमज्जिोवलित्तं सुगंधवरपंचवण्णपुप्फोवयारकलिगं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडज्मतधूवमघमघतगंधुडुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधिवट्टिभूग्रं करेह कारवेह, करित्ता कारविचा य सीहासणं रयावेह, रयावित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिणह ॥ ५८ ॥
हटवानुपिय आप लोग शीघ्रता से बाहर के सभा मंडप में सर्वत्र गंधोढक छिड़क कर स्वच्छ कराकर पवित्र करके नीपण चूपण कराकर सुगंधी श्रेष्ठ पांच वर्ण के फूलों से शोभायमान मंडप बना दो कालागुरू कुंदरक तुरुस्क के धूप से मघमघायमान करो, अर्थात् सुगंधमय, मनोहर, सुगंध व्याप्त मंडप को सर्वत्र करो वा दूसरे अनुचरों द्वारा कराओ इस प्रकार तय्यार होने के पश्चात् सिंहासन स्थापन करके मेरी आज्ञानुसार सर्व होजाने बाद यहां सूचना दो.