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देवलोक से आर्य पूर्ण कर ५ वे भव में कोलाक सन्नीवेश में अस्सीलाख पूर्व का आयू वाला कोशिक नामका ब्राह्मण हुवा अंतमें त्रीदंडी होकर सौधर्म देवता हुवा छठे भवमें स्थूणा नामी नगरी में वहोत्तर लाख पूर्वका आयु वाला पुष नामका ब्राह्मण हुवात्रीदंडी होकर सातवें भवमें सौधर्म देवलोक में देवता हुआ पाठमें भवमें चैत्य सनिवेश नामकी नगरी में साठलाख पूर्वकी आयु वाला. अग्नियोत नामी ब्राह्मण हुवा. अंतमें श्रीदंडी होकर नवमें भव में दूसरे देवलोक में देव हुवा. दसमे भवमें मंदिर सन्निवेश में पचाप्त लाख पूर्वकी आयुवाला अग्निभूति नामका ब्राह्मण हुवा अग्यार में भवमें सन्नत कुमार देवलोक में मध्य स्थिति वाला देव हुवा वारवे भवमें श्वेताम्बी नगरी में चम्मालीस लाख पूर्व वाला भारद्वाज नामका ब्राह्मण हुवा. अंतमें त्रिदंडी होकर तेरमें भवये महेन्द्र देवलोक में देव हुवा. चौदमे भवमें राज्यगृही में चोतीस लाख पूर्वकी आयु वाला स्थावर नामका ब्राह्मण हुवा अन्त में त्रिदंडी होकर पंद्रह में भवमें ब्रह्म देवलोक में देवहुवा सोलमे भवमें विशाख भूति क्षत्रीय की धारणी रानी का पुत्र कोटी वर्ष की आयुवाला विश्वभूति नामका क्षत्री हुवा साधू के पास दीक्षा ली और अत्यन्त तपस्या की जिससे दुर्वल होगया. ग्रामानुग्राम विहार करता हुवा पारणे के वास्ते मथुरा नगरी में आया. वहां विशाखनन्दी नाम के अपने रिश्तेदार से जो विवाह करने को वहां आया था. मिला, जिसने उसे दुर्वल देखकर और एक गाय के धक्के से गिरता हुवा देखकर कहा कि अरे विश्वभूति ! तेरा वो वल कहां गया. पूर्व में तो हमारा चचेरा भाई होने पर भी हमें निर्दयता से मारता था. ये सुनकर साधता को भूलकर मुनीने क्रोधवश नियाणा किया कि अपनी तपस्या के फल से दूसरे भवमें इससे वैर लेने वाला होऊ. सत्तरमें भव में चारित्र के फल से महा शुक्र देवलोक में उत्कृष्ट स्थिति वाला देव हुवा अठारमें भव में पोतनपुर नगर में प्रजापति नामका राजा की रानी मृगावती का पुत्र त्रिपृष्ट नामका वासुदेव हुत्रा, ओगणीसमें भवमे सातवी नारकी का नारक हुवा. वीशमें भवमें सिंह हुवा. एकवीसमें भवमें चोथी नारकी में नारक हुवा. चावीसमें भवमें साधारण स्थिति वाला मनुष्य, तेवीस में भवमें मूंका राजधानी में धनंजय नामका राजा की राणी धारणी की कूख में चोरासी लाख पूर्व की आयु वाला प्रियमित्र नामका चक्रवर्ती हुवा. अन्त में पोटिलाचार्य के पास दीक्षा लेकर एक कोड वर्ष तक चारित्र पालकर चोवीस में भव में महाशुक्र नाम के देव