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( १५ ) आठ कदम जाकर दायें पैर को ऊंचा रक्ख कर जीवने पांव को धरती पर रख कर बैठा हुवा तीन समय मस्तक को जमीन से लगाकर थोड़ासा ऊंचा होकर अपनी कंकण और भुजबंध इत्यादि वहुमूल्य आभूषणों से शोभित भुजा को ऊंची करके दोनों हाथ की अंगुलियों की अंजली मस्तक में लगाकर इन्द्र महाराज इस प्रकार भगवान श्रीमत् वीर प्रभू की स्तुती करने लगे.
सूत्र (१५)
नमुत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं, वाइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंड - रयाणं पुरिसवगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगीह चाणं लोगपश्वाणं लोगपज्जो गराणं, अभयदयाप चक्खदया मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बौहिदयाणं, धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउंरतचक्कत्रट्टीणं, दीवो ताणं सरणं गड़ पट्ठा अप्प - डिहयवरनापदंसणधराणं विवरमाणं, जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाएं बुद्धाएं बोहयाणं मुत्ताणं मोचगाणं, सव्वराणं सव्वदरिसीणं, सिवमय लमरुत्रणं तमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाएं जियभयाणं ॥ नमुत्थुणं समणस्स भगवत्र पहावीरस्स आह "गरस्स चरमतित्थयरस्स पुव्त्रतित्थयर निद्दिट्ठस्स जाव संपावि उकामस्स || वंदामिणं भगवंतं तत्थगयं इहगयं, पासह मे भगवं तत्थगए इहगयंति कट्टु समणं भगवं महावीरं वंदन नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुदे सन्नि स || तरणं तस्स सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्ने श्रयमेथारू
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