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स्थिते बाउसो ! इमं वा २" से किमाहु भंते ! ? सड्डी गिही गिरहइ वा तेणियंति कुज्जा ॥ १६ ॥
चौमासा में रहे हुए साधुओं को भक्त घरों में भी विना देखी वस्तु न मांगनी देखे वही मांगे क्योंकि वह भक्त होने से साधु को देने के लिये ग्रहस्थी चोरी वा जुल्म करे वा दोषित वस्तु लाकर देगा इसलिये शिष्य की गुरुने रामझाया कि बिना देखी वस्तु भक्त के घर की न मांगे. कृपण वा अभक्त घरों में अदेखी वस्तु भी जरूर हो तो मांगनी क्योंकि वह होगी तो देगा न होगी तो न देगा भक्ति में अन्धा होकर अनाचार नहीं करेगा.
वासावासं पज्जोसवियस्स निच्च भक्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगं गोचरकालं गाहाबद्दकुलं भत्ताए ना पाणाए वा निक्खमित्त पविसित्तए वा नन्नत्थाय रिक्वेयावत्रेण वा एवं उवज्झायवे॰ तवस्सिवे० गिलावे० खुड्डा वा खुट्टयाए वा अवजजाय वा ॥ २० ॥
चौमासा में स्थित साधुओं को नित्य भोजन करने वालों को गांव के लिये एक ही वक्त ग्रहस्थी के घरको जाना आना पे किन्तु आचार्य उपाध्याय तपस्वी घीमार छोटा साधु, जिसके दादी मृद न हो ऐसे साधुयों की वा उनकी वैयावन्य ( सेवा ) करने वालों को दो वक्त भी जाना अन इन्द्रियों पुष्ट करने को आहारादि न लेवे ).
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वासावासं पज्जीसवियम्स चत्यभनियम्म भिक्खुम्प अयं एवइए विसेसे-जं मे पाय निक्खम्म पुव्वामेव वियडगं भुचा पिना पडिग्गहगं संलिहिय संपमजिय से य संथरिज्जा. कप्पड़ से तद्दिवसं तेणेव भत्तद्वेणं पज्जीसवित्त-मेय नो संयरिज्जा, एवं से कपड़ दुपि गाहा वडकुलं भन्नाए वा पाणाए वा निक्खमित्तम् वा पत्रिमित्तम् वा ॥ २१ ॥