________________
(४) रात के समय उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में चंद्र योग में देवता के शरीर को छोड़कर मनुष्य सम्बन्धी आहार और भव ग्रहण कर (माता के उदर में ) आवंगे उसी मुजब महावीर स्वामी का जीव माता के उदर में आया.
मूत्र (४) समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए प्राविहुत्था-बड़स्सामित्ति जाणइ, चयमाणे न याइ, एमि त्ति जाएइ । जे रणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गम्मत्ताए वकंत, तं रयणिं च एं सा देवाणंदामाहणी सयणिजंसि सुत्तजागरा प्रोहीरमाणी २ इमेग्रारूवे उराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिवुद्धा, तंजहा, गय-वसहै-सह-अभिसे.-दाम-ससि-दिणपॅरं-मयं-कुंभ । पउमसैर-सागर-विमाणभवण-रयणुच्चय-सिहिं च ॥१॥1॥४॥ ___ महावीर स्वामी जिस समय माता के उदर में आये उसी समय उन्दै मनि, श्रुति और अवधि य नीन बान प्रास थे इसलिये च्यवन होने की और हॉगया ये दो वात वे जानने थे परन्तु च्यवता हूं वो "समय" मात्र काल होने से केवल ज्ञान न होने से वो धान नहीं जानने थे जिम रान को भगवान् महावीर प्रभु देवानंदा की कूख में आये उनी रान को देवानंदा ने पलंग पर सोने हुवे अल्प निद्रा में (अर्थान् आधी नींद और प्राय जागते ऐसी अवस्था में ) उदार कल्याणकारी उपद्रव हरनेवाले धन देने वाले मंगलीक सोभायमान उत्तम १४ स्वम देने. जो इस प्रकार हैं:-2 गज (हाथी) २ वृषभ (बैल) ३ सिंह (शर) ४ अभिपक (लक्ष्मी देवी का स्नान ) ५ पुष्यों की माला का जोड़ा. ६ चंद्र. ७ मयं. ८ वजा. ९ फलग. १० पत्र सरोवर. ११ दीर सागर. १२ विमान. ( भवन ) १३ रनों का र १४ निधूम अग्नी. इस प्रकार के चवदह बम देखें. (यह स्वम सब तीर्थकरों की अपेक्षा से कहे हैं) १-२ कयंयपुष्फपित्र.