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(१९८) हत्थि कासवगुत्तं, थम्मं सिवसाहगं पणिवयामि । मीहं कासवगुत्तं, धम्मंपिय कासवं वंदे ॥ ८॥
तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं । थेरं च प्रज्जवु, गोयमगुत्तं नमसामि ॥ ६॥
मिउमदवसंपन्न, उवउत्त नाणदंसणचरित्ते । थेरं च नंदियंपिय, कासवगुत्तं पणिवयामि ॥ १०॥
तत्तो य थिरचरितं, उत्तमसम्मत्तसनसंजुतं । देवष्टिगणिखमासमणं, माढरगुत्तं नमंसामि ।। ११ ॥
तत्तो अणुयोधरं, धीरं महसागरं महासत्तं । थिरगुत्तखमासमण, वच्छसगुत्तं पणिनयामि ॥ १२ ॥
तत्तो य नाणदंसण-चरित्ततवसुट्ठियं गुणमहंतं । थेरं कुमारधम्म, वंदामि गणिं गुणोवेयं ॥ १३ ॥
सुत्स्थरयणभरिए, खमदममद्द्वगुणेहिं संपन्ने । देवि. ड्ढिखमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि ॥ १४ ॥
(स्थविरावली सम्पूर्णा) मैं वंदन करता हूं, फलगुमित्र गौतम गोत्रवाले और धनगिरि वासिष्ठ गोत्रवाले. कुचिक गोत्रवाल गिवभूति और दुज्जत गोत्रवाल कृष्णमुनि को (१) काश्यप गोत्री भद्रमुनि. नक्षत्र और रक्षक मुनिको बंदन करता हूं (२) गाँतम गोत्र वाले आर्यनाग वाशिष्ट गोत्र वाले जहिल, माढर गोत्रबाले विश्नु और गीतग गोत्री कालकाचार्य का वंदन करता हूं. (३)
गौतम गोत्री गुप्तकुमार, संपलिक मुनि, भद्रमुनि और आर्यद्ध मुनिका नमस्कार करता हूं.४
स्थिर धर्य चारित्र और जान संपन्न काश्यप गोत्री संघपालक मुनि को वंदन करता हूं. ५
काश्यप गोत्री क्षमा सागर धीर आर्य हस्ती महाराज को बढन करता हूं जा चत्र मुदी में स्वर्गवासी हुए हैं. ६