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(१९७) आर्य रक्ष के शिष्य गानम गोत्री भार्य नाग थे उनके शिष्य आर्य जटिल पाशिष्ठ गोत्र के थे, उनके शिष्य माहर गोत्र के आर्य विष्णु (विश्नु ) हुए. उनके शिष्य आर्य कालिक गौतम गोत्र के थे कालिकाचार्य के दो शिष्य आ. र्य संपलिक और यशोभद्र मुनि वोही गोत्र के थे. __उन दोनों का शिष्य आर्य वृद्ध स्थविर गौत्तम गोत्र के थे. विक्रम गजा जो उज्जयिनी में हुआ उसके समय में कुमुदचंद्र अपरनाम सिद्धसेन दिवाकर जिनों ने अनेक ग्रन्थ गद्य पद्य बनाये है संपनि तर्क और कल्याण मंदिर प्रसिद है. उनके गुरु येही है. ऐसा ज्ञात होता है ]
भार्यवृद्ध के शिष्य गौतम गोत्रवाले आर्य संघपालिक हुए उनके शिष्य आर्य धर्म सुव्रत गोत्रके थे. उनके शिष्य आर्यसिंह काश्यप गोत्री थे. उनके शिष्य मार्य धर्म काश्यप गोत्री थे उनके शिष्य आर्य संडिल थे.
उन सब स्थविरों के गाथा लिखते है। ते वंदिऊण सिरसा, भदं वंदामि कासवसगुत्तं । नक्खं कासवगुत्तं, राखंपिय कासवं वंदे ॥ २॥
वंदामि अज्जनागं, च गोयमं जहिलं च वासिढे । विण्हु माढरगुत्तं, कालगमवि गोयमं वंदे ॥ ३ ॥
गोयमगुत्तकुमारं, संपलियं तहय भद्दयं वंदे । थेरं च अज्जवुड्ढं, गोयमगुत्तं नमसामि ॥४॥
तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं । धेरै च संघवालिय, गोयमगुत्तं पणिवयामि ॥ ५ ॥
वंदामि अज्जहत्थि, च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे । कालगयं चेव सुद्धस्स ॥६॥
वंदामि भज्जधम्म, च सुवयं सीललदिसंपन्न । जस्म निक्खमणे देवी, छत्तं वरमुत्तमं वहद ।। ७॥