________________
( १८० )
से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स एणं माहवहुलस्स (ग्रं० ६०० ) तेरसीपक्ख णं उपिं अट्ठावयसेलसिहरंसि दसहि अणगारसहस्सेहिं सद्धिं चोइसमे भत्तणं - पाणएणं अभीइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वरहकालसमयंसि संपलियंक निसरणे कालगए विक्कते जाव व्नवदुक्खपहीऐ ॥ २२७ ॥
२० लाख पूर्व कुमार वास, ६३ लाख पूर्व राज्य वास १००० छद्मस्थ दीक्षा १००० वर्ष कम एकलाख पूर्व केवलि पर्याय पालकर ८४ लाख वर्ष का आयुपूर्ण पालकर महा माम की कृष्ण तृयोदगी के रोज अष्टापद पर्वत उपर दस हजार साधुओं के साथ छे चौविहार उपवास में चन्द्र नचत्र अभिजित आने पर प्रभात के प्रहर मे पत्येक आसन में बैठे हुए ऋषभदेव प्रभु सर्व दुःखों का क्षय कर मुक्ति में गये.
स्नान
आसन कंपने से सौधर्म इन्द्र आया इस तरह ६४ इन्द्र मिले बाद तीन चिताए कराई एक में प्रभु को दूसरे में गणधरों को तीसरे में सामान्य साधुओं कां कराके गोशीर्ष चन्दन का लेप कर हंस लक्षण व ढांककर उत्तम चन्दन की लकड़िये और सुगन्धी पदार्थों से जलाये सब देवों ने यथोचित निर्वाण महोत्सव की भक्ति की पीछे अग्नि बुझाकर बाकी जो हड्डियै रही थी वो कल्पानुसार सौधर्म इन्द्र ने दाहिणी उपर की दाढा ली ईशान इन्द्र ने उपर की डांबी दाढाली चमरेंद्र बलींद्र ने नीचे की ली दूसरे देवों ने और हड्डी ली इन्द्र ने तीन चिताएं उपर तीन स्तुप बनवाये पिछे नंदीश्वर द्वीप में नाकर अढाइ महोत्सव कर अपने स्थानक को गये इन्द्रों ने जो दाढाएं ली थी उनकी पूजा देवलोक में करते हैं. उसभस्स णं अरह कोसलियम्स कालगयस्स जाव सव्वक्खप्पीस्स तिरिण वासा श्रद्धनवमा य मासा विड़कंकता, तोवि परं एगा सागरोदमकोडाकोडी तिवासश्रद्ध - नवमासाहियवायालीसाए वाससहस्मेहिं ऊलिया विड़क्कंसा,