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(१७६) उसमस एं० अरहयो वावीससहस्सा नवसया अणुत्तरीबवाइयाणं गइकल्लाणाणं जाव भदाणं उक्कालिया ।। २२५ ।।
ऋपभदेव का परिवार. ८. 'गणधर, ८४ गण, ऋपभेसन प्रमुख, ८४ हजार माधु, ब्रामी मुंदरी वगेरह ३ लाख साध्वी श्रेयांस वगेरह ३०५००० श्रावक, सुभद्रा वगैरह ५५४००० श्राविका, ४७५० चौट पूर्वीश्रुत केवली, नव हजार अवधि ज्ञानी, २०००० कंवल ज्ञानी, २०६०० वैक्रिय लब्धि वाले, १२६५० वि.पुलमनि पर्यव ज्ञानी १२६५० वादी थे, २०००० साधु चालीस हजार साध्वी माक्ष में गई २२६०० साधु अनुत्तर विमान में गये.
उसमस्त एं० अरहयो दुविहा अंतगडभृमी हुत्था, तंजहा-जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य, जाव असंखिज्जायो पुरिसजुगायो जुगंतगडभूमी, अंतोमहत्तपरिधाए अंतमकासी ॥ २२६ ॥
दो प्रकार की अंनछन भूमि थी जुगांनकृत भूमि में अमंग्यान पाट मान में गये, पर्याय अंतकृत भूमि में अंन मुहूर्त में मरुदेवी मोक्ष में गई.
तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमें परहा कोसलिए वीसं पुधसयसहस्साई कुमारवासमझे वसित्ता णं तेवढेि पुब्बसय सहस्साई रज्जवासमझे वसित्ता णं तसीई पुव्यसयसहस्माई अगारबासमज्जे वसित्ता एं एगं वाससहस्सं छउमत्यपरियायं पाउणिना एगं पुब्यसयसहस्सं वाससहस्साणं केवलिपरिसायं पाउणित्ता पडिपुराणं पुखसयसहस्सं मामगएपरियागं पाउणित्ता चउरासीई पुब्बसयसहस्साई सब्बाउयं पालहना खाण वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे योगप्पिणीए मुसगदुसमाए ममाए बहुविकांनाए निहिं वामेहिं अदनवमेहि य मामहिं ममहिंजे