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(१७७) ओं का आचार समझाकर रानपिंड और साधु निमित्त बनाया भार मामने लाया इत्यादि दोप युक्त आहार न लेने दिया तब भरत महाराणा ने पूछा कि मैं उस का क्या करूं ? इन्द्र ने कहा आपसे अधिक गुणियों की भक्ति कगं तब से साधु नहीं पर साधु जैसी निस्पृही वृत्ति रखने वाले बारह व्रतधारी प्रत्मचर्य को प्रधान मानने वाले माहन बोलने वाले वन तत्वविद ब्राह्मणों को भोजन जिमाया उनको पिछानने के लिये सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र तीन रत्न प्रधान मानने वाले यह है इसलिये उनके कंगणी रत्न से तीन रंखायें की पीछे वे ही रेखायें यज्ञोपवित के रूप में परिवर्तन हुई प्रजा के मुखार्थ लोक नीनि प्रधान अपभदेव की स्तुति रूप चार वेद भरतजी ने बनाय उन द्वारा ब्रामण ज्ञान देने लगे।
(हिंसक यज्ञ की प्रवृत्ति होने से और ब्राह्मणों ने निःस्पृहना छोड्दी जिससे जनधर्म स धीरे धीरे ब्रामण अलग हुये और बंद की गाणता होगः जैनों ने दया प्रधान धर्म स्याद्वाद नाम से प्रचलिन किया ) ___ऋषभदेव प्रभु जब आते थे तब भरत महागना उद्यान में वांदने को जाने वैराग्य से भरी हुई वाणी सुनकर लीन होना था एक दिन महल में आरिसा (आयना ) भवन में वस्त्रालंकार पहरते समय एक अंगूठी निकल पड़ी नब शोमा कम देखकर सब भूपण उतारे तो जान लिया कि शोभा पर पुद्गल (जड पदार्थ ) से है ! उसमें कौन भन्यात्मा मोह करंगा ! श्रान्म भावना में दृढता हुई और शुद्ध भाव से केवल ज्ञान प्राप्त किया, देवता ने मुनि वेश दिया वो पहरकर १०००० दस हजार दीक्षित गजाओं के साथ माधुपंन में फिकर मांच में गये भरत का पुत्र आदि यशः उम का पुत्र महायश, अभिवल, पलभद्र, बलवीर्य, कीर्तिवीर्य, जलवीर्य, दंडवीर्य एस आठ वंश परम्पग याग्गिा भवन में केवली होकर मोच गये. ___उसमस्स णं अरहयो कोसलिग्रस्म चउरामाई गणा, चउरासीई गणहरा हुत्था ।। २१३ ।। ___ उमभस्म ० उसमसेणपामुक्खाणं चउरामीइयो ममणसाहस्सीयो उफोसिया समणमंपया हत्था ॥ २१.४ ।।