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(१७६) - ब्राझी न दीक्षाली श्रावक धर्ग भरत ने स्वीकृन किया, मुन्दरी का भरन । महागज दीक्षा नहीं लेने दी जिससे वो श्राविका हुई कच्छ महा कच्छ वगैरह . ने नापम दीक्षा को छोड़ फिर दीवाली. ___भरत यहागज चक्ररत्न से ६०००० वर्ष कत फिर करछखंड सायकर आये इनन समय नक सुन्दरी ने नपकर काया को सूखादी अयोध्या में भरतजी आने पर वैराग्य में दृढ सुन्दरी ने समझा कर दीचाली. . प्रभु के पास ९८ भाई न जाकर पूछा कि भरत राजा हमें कहना है कि आप हमारे वश में रहा नो हमें क्या करना चाहिय ! प्रभु ने उनको वतालिय' अध्ययन से संसार नृष्णा को बहनी बनाकर कहा कि तृष्णा का छेद करो! अर्थात् दीक्षा विना मुक्ति नहीं होती तब सब ने उमी वक्त दीक्षाली.
बाहुबली को भी भग्न ने कहलाया कि मेरे वश में रहो, नव वाहुवली ने उसके साथ युद्ध किया बड़ा युद्ध हुआ इन्द्र ने आकर कहा कि बहुत मनुष्य मरगये अब दोनों भाई दृष्टि युद्ध वचन युद्ध बाङयुद्ध मुष्टियुद्ध दंडयुद्ध स्वयं करा सब में भग्न हारा तब उसने चक्र मारा वाहुबली एक गोत्र का होने से चक्र लगा नहीं तव भरन ने मुक्की मारी बाहुबल को क्रोध चडा उसने मुक्की मारने को उठाई परन्तु बड़ा भाई का नाश करना बुरा समझ कर वो ही मुट्ठी से अपने बालों का लोच कर साधु होगया, भरत को बड़ा खद हुआ चरणों में पड़ा क्योंकि गज्य लाभ और मान से ६६ भाई का अपमान किया था परंतु निराकांनी बाहुबली ने उसको बांध देकर संतुष्ट किया तब तक्षशिला का राज्य उसके पुत्र को दिया और भरत अयोध्या लौट आये. बाहुबलि ने दीक्षा लेकर विचारा कि:
९८ भाई छोटे होने पर भी दीक्षा लेन से बड़े ये उन को मैं उम्र में बड़े होने से कस वंदन करूं ? इमलिये केवल ज्ञान पाप्त करने को एक वर्ष तक वा कार्यान्सग में रहे अपमंदव प्रभुने ब्राह्मी सुंदरी साध्वी द्वारा बोध कराकर अपने पास बुलाये राहुबली ने मान को दूरकर साधुओं को वंदनाथ जाने को पैर उठाया कि शीघ्र कंवल ज्ञान हुआ. .. भरत महाराजा ने एक दिन विचारा कि सब भाई साधु हुये ना मैं उनकी भक्ति करं! जिमाने के लिये ५०० गाड़ी भाकर मिठाई ले भाये -प्रभुने साधु