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भगवान् को तीन ज्ञान होने से भूत भविष्य का हाल जाने पण च्यवन का वर्तमान समय न जाने चोद स्वम का अधिकार में भेद यह है कि माना प्रथम वृषभ देखें बाकी सब पूर्व माफिक जानना स्वम पाटक न होने से नाभि कुल करने स्वयं अपनी बुद्धि अनुसार कहा था.
ते कालेणं तेणं समरणं उसमे णं रहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे पक्वे चित्तवहुले तस्स णं चित्तत्वहुलस्म चट्टमीपखे णं नवग्रहं मासाएं बहुपडिपुराणं यद्धद्रुमाणं राईदियाणं जाव यासाढाहिं नक्खत्तेणं जोगसुवागएणं जाव आरोग्गा आरोग्गं दारयं ययाया ॥ २०८ ॥
तं चैव सव्वं जाव देवा देवीयो य वसुहारवासं वार्सिंसु, तव चार सोहणं माणुम्मा एवड्ढणं- उस्क्कसुमाइयट्टिवडियजूयवज्रं सव्वं भाणिद्यव्वं ॥ २०६ ॥
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ऋषभदेव का जन्म चैत्र वदी ८ के रोज हुआ बाकी सर्व पूर्व की तरह है, मरुदेवी माता ने निरोगी सुंदर पुत्र को जन्म दिया.
देव देवियों का आना गोंगाट डोना, द्रव्य वृष्टि करना पिता का दश दिनों का महोत्सव पूर्व की तरह जान लेना.
ऋषभदेव प्रभु सुन्दर रूप वाले देव और युगलिक मनुष्यों से घेरे हुए फिरते थे बाल्यावस्था में अमृत पान करते थे और बड़े होने बाद दीक्षा समय तक कल्पवृक्ष के फल ग्वांते थे अमृत को अंगूठे में देवता ने रखा था और उत्तरकुरु से कल्पवृच के फल भी लादिये थे.
प्रभु के वंश की स्थापनार्थ इन्द्र इभु लेकर आया एक वर्ष की उम्र में प्रभु ये तो भी ज्ञान से इन्द्र का अभिप्राय जानकर लंबा हायकर इक्षु (सेठा, गन्ना ) लिया इन्द्र ने उससे उनके कुल का नाम इच्चाकू रखा गांव का नाम काश्यप रखा. एक युगलिक (श्री पुरुष ) का जोड़ा फिरता था छोटी उम्र में पुरुष को ताल वृक्ष का फल लगने से प्रथम अकाल मृत्यु हुआ छोटी लड़की का कोई रक्षक न रहने से नाभि कुलकर को दी उनके साथ वो फिरनी थी बड़ी हुई