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वाले विमल वाहन को कुलकर (मुखिया) बनाया त्रिमल वाहन ने उन युगलिकों के हितार्थ गुनहगार को दंड "हकार" शब्द रखा उसकी भार्या का नाम चंद्रयश था और दोनों नवसो धनुष्य ऊंचे थे.
( २ ) उनका पुत्र चक्षुष्मान हुआ, (३) यशः स्वान ( ४ ) अभिचंद्र ( ५ ) प्रसेनजित ( ६ ) मरुदेव ( ७ ) नाभि कुलकर थे उनकी भार्या मरुदेवा थी इसके कुल में ऋषभदेव हुए.
दो के समय में हाकार दो के समय में माकार, दो के समय में धिक्कार और सातवे कुलकर के समय में तीनों ही थे
ते काले तेणं समए उसमे रहा कोसलिए जे से गिम्हाणं उत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढवहुले तस्स णं श्रासाढत्र हुलस्स चउत्थी पक्खे णं सव्वट्टसिद्धाओ महाविमाणाश्रो तिचीससागरोवम द्वित्रायो श्रणंतरं चयं चहत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे इक्खागभूमीए नाभिस्स कुलगरस्समरुदेवीए भारिया पुत्ररत्तावरत्तकालसमयसि श्राहारवकंतीए जाव गव्भत्ताए वक्कते ॥ २०६ ॥
उस समय ऋषभदेव तीर्थकर आपाढ़ नदी ४ के रोज सवार्थ सिद्ध विमान से ३३ सागरोपम प्रायुपूर्ण कर एकदम इस भरत क्षेत्र में इच्वाकु भूमी में कौशल ( अयोध्या ) देश में ( कौशल देश में उत्पन्न होने से ) कौशलक मरुदेवी की कुक्षि में मध्य रात्रि में आये.
उसमे
रहा कोसलिए तिन्नाणोत्रगण श्राविहुत्था, तं हा चहस्सामित्ति जापड़- जाव- सुमिणे पाड़, तंजड़ा-गयगाहा । सव्वं तहेव-नवरं पढ़मं उसभं सुहेणं तं पासइ-ससायो गयं । नाभिकुलगरस्स साहइ, सुविणपाढगा नत्थि, नाभिकुलगरो सयमेव वागरेह ॥ २०७ ॥