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। (७) यमान हुवा वो अवधि ज्ञान द्वारा सर्व वार्ता को जानकर ब्राह्मण के स्वरूप में आकर सेठ के धन और घर की रक्षा करने लगा और राजा के सेवों को पाल नहीं ले जाने दिया. ये समाचार नोकरों द्वारा राजा सुनकर स्वयं वहां आया और हाथ जोड़ कर कहने लगा कि हे भूदेव ! इस में आप क्यों विघ्न डालते हो? ब्राह्मण ( इन्द्र ) ने उत्तर दिया, कि इस संपत्ति का मालिक जिन्दा है और उसी समय जमीन से उस बालक को निकाल और अमृत छांट कर जागृत किया और राजा से कहा कि हे राजन ! इस बालक की रक्षा करने से आपको बहुत लाभ होवेगा. राजाने हाथ जोड़कर पूछा, हे भूदेव ! कृपाकर अपना परिचय दीजिये. तब इन्द्र ने अपना साक्षात् रूप प्रकट करके कहाँ कि इस बालक के तप के प्रभाव से मेरा आसन कम्पायमान हुवा, तो मैंने अवधि ज्ञान द्वारा सर्व रहस्य जानकर इस बालक की सेवा के लिये यहां
आया हूं। यह वालक पूर्व भव में बहुत दुःखी था और एक समय अपने मित्र से अपनी दुःख की कथा कही तो मित्रने अहम तप का रहस्य समझाकर इसे अहम तप करने के लिये कहा. बालक ने पर्युषण पर्व में इस तप को करने का विचार कर शान्ति से निद्रा ली परन्तु सोत माताने इसे सोता देख अपनी देष बुद्धि से उस झोंपड़े ( मकान ) में आग लगादी, जिसके द्वारा इस की मृत्यु होगई, परन्तु उस समय के अहम तप के शुभ भाव से इस का जन्म यहां हुवा और पर्युषण पर्व में अहम तप करने की बात सुनकर इस वालक को जाति स्पर्ण ज्ञान प्राप्त हुवा, जिस के द्वारा अपने पूर्व भव में किये हुवे विचार के स्मर्ण होने से इसी लघुवय में ही यह अहम तप किया, इस कारण से इसने माता का दूध न पीया । इन सर्व भेदों से अनजान होने के कारण माता पिताने बालक को किसी प्रकार का रोग हुवा समझकर औषधि का उपचार ( उपाय) करना चाहा परन्तु बालकने तप में पक्का होने से कोई दवा न पी. लघुवय के कारण अचेत होगया, परन्तु सर्व लोकों ने उसे मरा हुवा ममझकर जमीन में गाड़ दिया और इसके माता पिताने भी शोक से विह्वल हो प्राण त्याग दिये। इस प्रकार से राजा को समझाकर इन्द्र महाराज ने कहा, कि हे राजन! अब इस बालक की आप रक्षा करें और इस बालक द्वारा आपका बहुत भला होगा। यह बचन सुनकर तथा इन्द्र महाराज को पहिचान कर राजा हाथ जोड़ कर खड़ा हुवा और सविनय कहने लगा कि आप की आज्ञा शिरोधार्य है, इन्द्र तो अपने स्थान को सिधाये और राजा बालक को पुत्रवत् पालन करने लगा