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स्वामी वात्सल्य करना ( ४ ) परस्पर वैर विरोध प्रतिक्रमण से दूर करना ( ५ ) जीव रक्षा के योग्य उपाय करना ( ६ ) अर्थात् पर्व के दिनों में तन मन धन से जैन धर्म की उन्नति करना ।
कल्पसूत्र के उद्धारक ( रचयिता ) सिद्धांत में से अमृत समान थोड़े सूत्रों में अधिक रहस्य बताने वाले भद्रबाहू स्वामी चौदह पूर्व के पारगामी थ उन्होंने दशाश्रुत स्कंध और नवमा पूर्व से उद्धार किया है ।
पूर्व ।
जैन शास्त्रों में अंग उपांग कालिक उत्कालिक इत्यादि अनेक भेद हैं जिन में पूर्व बारहवां अंग में है बारहवां अंग दृष्टिवाद है उस अंग का विषय रहस्य बहुत बड़ा है और पूर्व का लिखना अशक्य है वाल जीवों को समझाने के लिये कहा हैं कि पहले पूर्व का रहस्य लिखने के लिये एक हाथी जितना ऊंचा शाही का ढेर चाहिये और प्रत्येक को दुष्ट गिनने से चौद्रवां पूर्व आठ हजार एक मोबाएं हाथी जितना शाही का ढेर चाहिये सब पूर्वी का हिसाब गिनती में १-२-४-८-१६-३२-६४-१२८-२५६-५१२-१०२४- २०४८ ४०६६ - ८१६२ सव मिलके १६३८३ होते हैं इतना रहस्य समझने वाले भद्र बाहू स्वामी ने इस ग्रंथ की रचना की है इसलिये कल्पसूत्र माननीय है और उस सूत्र का अर्थ भी बहुत गंभीर है इस कल्पसूत्र के रहस्य में कुछ लिखते है ।
अट्टम (तीन उपवास ) तप की महिमा |
चंद्रकान्त नाम की नगरी, विजयसेन राजा, श्रीकान्त नाम का सेठ, श्री सखी नाम की भार्या पृथ्वी ऊपर भूषण रूप थे. यथा विधि धर्म ध्यान करने से श्रीकान्त के पुत्र रत्न हुवा. पर्यपण में अन तप करने की बात दूसरों के मुंह से सुनी, सुनते ही बालक को पूर्व भव का ज्ञान हुवा और बालकने अहम तप किया, कोमल वय और दूध नहीं पीने से वो अशक्त और मरने समान होगया, माता पिताने उपचार किया परन्तु वालक तो कुछ भी औषधि न लेने से मृत समान होगया उसको मरा हुवा देखके ( समझ के ) जमीन में गाड दिया. पुत्र के शोक से विद्दल होकर उसके माता और पिताने भी प्राण छोड़ दिये. राजाने सेठ के सपरिवार मृत्यु होने के समाचार सुनकर उसका धन लेने का अपने नोकर भेजे. श्रम तप के प्रभाव मे धरणेन्द्र का आसन कला