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(१३०) के पूज्य. पूना के योग्य उस वक्त के वा सब जीवों के मन वचन काया के पापारों को जानने वाले हुए और जानने हुए विचरते रहे अर्थाद केवल ज्ञान ही से सब वान को जानने और देखने लगे. .
प्रभु का ज्ञान महोत्सव । तीर्थंकर महावीर प्रभु को केवल बान हुअा तब देवेन्द्रों के आसन कंपायमान हुए वे अवधि जान से जानकर आय और प्रभुन देवों के रचा हुआ समत्र सरण (सभा मंडप) में बैठकर धर्मोपदेश दिया मनुष्य नहीं आये जिससे विरति (चारित्र) किसी को प्राप्त नहीं हुआ. तीर्थंकर की यह प्रथम देशना निष्फल हुई और प्रभु ने भी थोड़ी देर देशना (उपदेश ) देकर विहार कर महसेन वन ( पावापुर से थोड़े मैश ) में दूसरे दिन धर्मोपदेश दिया.
गणधर वाद गोतम इन्द्रभूतिजी का मिलाप । इन्द्र और देवना मनुष्य स्त्रीओं का समूह जाना आता देखकर गौतम इन्द्र भूतिजी जो यन्त्र कर रहे थे और उनके साथ दो भ्राता और आठ अन्य वेद पारंगामी ब्राह्मण विद्वान अपने ४४०० शिष्यों के परिवार से मंमिलिन ये उन के दिल में लोगों को आते देख कर आनन्द हुआ परन्तु यन्नमंडप से आगे बढते देखकर इन्द्रभृति को दुःख हुआ और लोगों से पूछने लगा कि आप कहां जाते हैं। प्रभु की वहुत महिमा सुनकर उनको शिष्य बनाकर महिमा बढाउं वा मेरी शंका का ममाधान कर शिष्य बननाउं ऐसा निश्चय कर वहा भाई इन्द्रभूति ५०० शिष्यों के साथ गया प्रभुने आते ही गौतम इन्द्रभूति को कहा हे भद्र ! तेरे मन में यह जीव सम्बन्धी संदह है उसका समाधान मुन!
शंका का समाधान। जीव है वा नहीं ? ऐसी शंका तेरे दिल में है क्योंकि वेद पदों का अर्थ नरे समझ में नहीं आया.
विज्ञान घन एव एतेभ्यो भूतेभ्यो, समुत्याय तान्येवानु विशति म प्रेत्य संज्ञाऽस्ति इति
इसका अर्थ तर खयाल से यह है कि,