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(१११) लगे किन्तु उस मंदिर में रातवासी कोई रहवे तो जन उसको मार डालता था प्रभु ने उसको बोध देने को शूलपाणी जक्ष के मंदिर में लोगों ने ना कही तो भी रात्रि में निवास किया जक्ष ने रात्रि में बहुत गुस्सा लाकर देवमाया से भयंकर रूप हास्य जनक रूप देखाकर त्रास दिया तो भी प्रभुने अपना ध्यान न छोड़ा तव ज्यादा गुस्सा लाकर मस्तक नाक कान आंख वगैरह कोमल भागों में पीडाकर ने लगा तो भी प्रभु को निष्कंप देखकर शूलपाणी ज्यादा ज्यादा दुःख देने लगा अंत में वो थका तब सिद्धार्थ व्यंतर आकर कहने लगा है निभागी पुण्यहीन ! तू किसको सताता है डराता है ? मालूम नहीं ! वो इंद्र को भी पूज्य है । इन्द्र तेरी मिट्टी खराब करदेगा । ऐसा सुनकर शूलपाणी घबराकर प्रभु के चरणों में पड़ा क्षमा चाही और उनको प्रसन्न करने को नाटक करने लगा किन्तु प्रभुने पूर्व में वापीछे द्वेष वा राग न किया ( इसलिये प्रभु का चरित्र प्रत्येक मुमुक्षु मोक्षाभिलाषी भव्यात्मा को अधिक आदरणीय है )
चार प्रहर इस तरह दुःख में निकाले किंतु थोड़ी रात रही कि जक्ष प्रयत्न होकर सेवा करता रहा उस समय प्रभु को अल्प निंद्रा आई आर उसमें उनको दश स्वम देखे देखते ही जागृत हुए गांव के लोग भी जन का चमत्कार देखने को आए जक्ष को प्रभु की सेवा करता देखकर लोग भी सेवा करने लगे नमस्कार करने लगे उन लोगों में उत्पल, इंद्र शर्मा, नाम के दो भाई ज्योत्सी थे उन्होंने आकर प्रणाम कर उत्पल बोला कि हे प्रभो आपने आज दश स्वम देखे उसको फल आप जानते है मैं भी कहता हूं।
. दश स्वप्नों का फल । (१) आपने प्रथम स्वप्न में ताड़ (जितना बड़ा ) पिशाच का नाश किया उससे आप मोहनीय कर्म ( मोह ) का नाश करोगे.
(२) सेवा करने वाला शुक्ल पक्षी देखा उससे आप शुक्ल ध्यान (निर्मल आत्म तत्त्व ) को धारण करोगे.
(३) सेवा करने वाला कोयल पक्षी देखा उससे आप द्वादशांगी (श्राचारादि बारह भङ्ग सिद्धांत ) का अर्थ विषय प्ररूपणा करोगे.
(४) सेवा करने वाली गायों का समूह देखा उससे आपकी सेवा साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ करेगा.