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(१०८) लिये आठ मास फिर कर वा ऋतु में वहां आय. कुलपति ने एक घास का झोपड़ा निवास करने का दिया घाम के अभाव में और जगह पर घाम नहीं मिलने से गाये वहां आकर ऑपड़े का घास खाने लगी कुलपति को वो वात मालुब होने पर उसनं आकर वीर प्रभु को कहा कि हे महावीर ! चत्रि पुत्र होकर राज्य पालना तो दूर रहो ! क्या एक झापड़ की भी रक्षा करने की तेर्ग गक्ति नहीं है ? पक्षी भी अपने घोंसले की रक्षा करते हैं ऐसे वचनों में प्रभु ने विचारा कि मैं तो जीव दया की खातर पशू को हटाना नहीं, पर उसका व्यय क्लेश होता है, ऐसा कलश फिर न-हाँ एमा निश्चय कर बीमामा के पदरह दिन व्यनीत हान बाद प्रभुंन विहार किया और पांच अभिग्रह (प्रतिना) किये.
( १ ) जहां अनीति हो। उसके घर में ठहरना नहीं, (२) हमेशा प्रतिमा (नए विशेष ) धार्ग रहना, (३) ग्रहस्यों का विनय नहीं करना, (४) पौन रहना, (५) हाथ में ही भोजन करना.. ___ महावीर प्रभु ने एक वर्ष और एक मास से कुछ अधिक समय तक बन धारण किया उसके बाद वन रहित ( अंचलक ) र उनके पुण्य तंज के प्रभाव सं दूमरों को नग्न नहीं दीखन थे न काई को उनस ग्लानि होनी थी. - प्रभु का देव दूप्य वस्त्र का दूर होना.
मन दीक्षा ली उसके एक वर्ष एक मास में कुछ अधिक समय बाद व विहार करने दक्षिण वात्राट नाम के गांव की नरफ जहां सुवर्ण वालु का नदी वहनी थी वहां पर आने के समय कांटे की बाड में वस्त्र लगा और कांटे से लाकर बम्ब गिरपड़ा वह प्रधुने सिंहावलोकन से देखा कि वह वस्त्र निर्दोष नगह में पड़ा है कि नहीं ? किंतु त्याग वृत्ति से पीटा ग्रहण नहीं किया वह दान लेने की इच्छा से प्रभु के पीछे फिरने वाले ब्राह्मण ने उठा लिया,
उस ब्राह्मण की कथा. प्रधुन जब दीक्षा के पहिल दान दिया उस समय वह ब्राह्मण विदेश में था, पीछ आया तो उसकी स्त्रीन कहा कि प्रमुन जिस समय दान दिया उस सयय तूं विदेश चला गया अब क्या खाग ? इमलिये प्रभु के पास जाओ कुछ मां अब भी वे देवग. बायण पांच में आकर प्रार्थना करने, लगा प्रभु के