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जीवन्धरचस्पू
(१४) उपरिजतरुजार्थं वामहस्तेन काचिद्
विशतसुरभिशाखा सब्यहस्ताप्तकाञ्ची । अमलकनकगौरी निर्गलन्नीविबन्धा नयनसुखमनन्तं कस्य वा दाङ्ग न तेने॥
-लम्भ ४ श्लोक ७
(१४) उदग्रशाखाकुसुमार्थमुद्भुजा
व्युदस्य पाणिद्वयमञ्चितोदरी । नितम्बभूतस्तदुकूलबन्धना नितम्बिनी कस्य चकार नोत्सवम् ॥
-सर्ग १२ श्लोक ४२
एक विचारणीय बात
इतना सब होनेपर भी एक बात अवश्य विचारणीय है कि कविने जीवन्धर चम्पूमें पाँच अणुव्रतोंका धारण और तीन मकारका त्याग इनको श्रावकके आठ मूल गुण बतलाया है और धर्मशर्माभ्युदयमें मद्य मांस मधु त्याग तथा पञ्चोदुम्बरफलके त्यागको आठ मूल गुण बताया है । जैसा कि दोनों ग्रन्थों में कहा गया है
हिंसानृतस्तेयवधूव्यवायपरिग्रहेभ्यो विरतिः कथञ्चित् । मद्यस्य मांसस्य च माक्षिकस्य त्यागस्तथा मूलगुणा इमेऽष्टौ-जी० च० लम्भ ७ श्लोक १६ मद्यमांसासवत्यागः पञ्चोदुम्बरवर्जनम् । अमी मलगणाः सम्यग्दृष्टेरटौ प्रकीर्तिताः ॥
-धर्मः सर्ग २१ श्लोक १३२ इसी प्रकार चार शिक्षाब्रतोंके वर्णनमें भी कुछ वैशिष्टय है
सामायिकः प्रोषधकोपवासस्तथातिथीनामपि संग्रहश्च । सल्लेखना चेति चतुःप्रकारं शिक्षाव्रतं शिक्षितमागमः ॥ -जी च०, लम्भ ७ श्लोक १८ सामायिकमथाद्यं स्याच्छिक्षावतमगारिणाम् । आतरौद्रे परित्यज्य त्रिकालं जिनवन्दनात् ॥१४६॥ निवृत्तिर्भुक्तभोगानां वा स्यात्पर्वचतुथ्ये । प्रोषधाख्यं द्वितीयं तच्छिक्षाव्रत मितीरितम् ॥१५०॥ भोगोपभोगसंख्यानं क्रियते यदलोलुपैः । तृतीयं तत्तदाख्यं स्याद्दुःखदावानलोदकम् ॥१५॥ गृहागताय यत्काले शुद्धं दानं यतात्मने ।
अन्ते सल्लेखना वान्यत्तच्चतुर्थ प्रकीर्त्यते ॥१५२॥ अर्थात् जीवन्धर चम्पूमें सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत गिनाये गये हैं। और धर्मशर्माभ्युदयमें सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिमाण, और अतिथिसंविभाग अथवा सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत कहे गये हैं।
एक ही ग्रन्थकर्ता अपने दो ग्रन्थों में दो प्रकारकी मान्यताओंका उल्लेख करता है यह विचारणीय बात है । मूल गुण, गुणव्रत और शिक्षाव्रतोंके नामोल्लेखमें जैनाचार्यों में शासनभेद है। इतना अवश्य है कि आचार्यों ने एतद्विपयक अपनी मान्यताका उल्लेख करते हुए किसी दूसरी मान्यताका निराकरण किया हो, यह देखनेमें नहीं आया। फलतः जो दो तीन प्रकारकी मान्यताएं प्रचलित हैं वे सबको स्वीकार्य है। संभव है कि कविने एक ग्रन्थमें एक मान्यताका उल्लेख किया हो और दूसरे ग्रन्थमें दूसरी मान्यताको । धर्मशर्माभ्युदयमें शिक्षाव्रतोंका वर्णन करते समय अतिथिसंविभागके विकल्पमें सल्लेखनाका भी नामोल्लेख करते हुए कविने अपनी तटस्थता सूचित की भी है। यहाँ मैं इतना लिख देना उपयुक्त समझता हूँ कि यह मेरा एक विचार है अन्य विद्वान् भी इस वपय पर विचारकर यथार्थ बातका निर्णय करें।