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जीवन्धर चम्पूकाव्य की शोभा को, कमरमें कुसमानी रङ्गमें रँगे वस्त्रकी शोभाको, करकमलोंमें पद्मराग मणिनिर्मित कङ्कणकी शोभाको, और पैरोंमें लाखके रसकी ( महावरकी ) शोभाको उत्पन्न करते थे।
अग्निके द्वारा संतप्त होकर पिघले हुए सुवर्णके समान वर्ण वाले, जीवन्धर स्वामीके प्रताप के अंशोसे जब समस्त पर्वत लिप्त होकर पीले-पीले दिखने लगे तब देवियोंको मेरु पवतके विषयमें भ्रम हो गया था ।। ३ ।। पद्माकर-कमलोंके सरोवरसे सुशोभित इस राजहंस-हंस विशेषका, सदा बहुधा अनेक प्रकारसे अवननिन्नत्व-जलके आधीन नहीं रहना आश्चर्यकारक था अथवा बहुधा--अनेक प्रकारसे वननिन्नत्व-जलके आधीन रहना, तथा बहु-धावन निघ्नत्व-बहुत दौड़-धूपके आधीन रहना आश्चर्य कारक नहीं था क्योंकि हंस पक्षीका उक्त स्वभाव ही है । पक्षमें पद्माकर-लक्ष्मीके हाथोंसे सुशोभित इस श्रेष्ठ राजाका सदा बहुधा अनेक प्रकारसे वननिम्नत्व-वनके आधीन रहना-वनमें निवास करना आश्चर्यकारक था अथवा अनेक प्रकारसे अवननिघ्नत्वं-रक्षाके आधीन रहना आश्चर्यकारक नहीं था ॥४॥ जिसका आकार अत्यन्त मनोहर था और लक्षण उत्कृष्ट थे ऐसो लक्ष्मणा-सारसकी पत्नी राजहंस -हंसविशेषकी पत्नी हुई थी यह आश्चर्यकी बात देखी गई थी। पक्षमें लक्ष्मणा-गोविन्दराजकी लक्ष्मणा नामकी पुत्री, राजहंस-श्रेष्ठ राजा जीवन्धर स्वामीकी पत्नी हुई थी ॥ ५॥
यह जीवन्धर स्वामी, वलभद्रके चिह्नांसे सुशोभित तथा पद्म-राग इस नामसे सहित होनेपर भी सुमित्रानन्दन-लक्ष्मण थे यह आश्चर्यकी बात थी ( पक्षमें उत्तम चिह्नोंसे सहित तथा कमल-जैसी शोभासे सुशोभित होकर भी सुमित्रानन्दन-अच्छे मित्रोंको आनन्दित करने वाले थे। ) विजयसे आनन्दयुक्त होकर भी कुण्डलोंसे सुशोभित राजा कर्ण थे अर्थात् महाभारतमें कर्णकी हार हुई तो पर यह तो विजयके सहित थे अतः आश्चर्यकी बात थी। (पक्षमेंविजया रानीके पुत्र होकर कुण्डलोंसे सुशोभित कानोंसे युक्त थे) धृतराष्ट्र होकर भी--दुर्योधनादि कौरवोंके पिता होकर भी धर्ममय थे-युधिष्ठिरादि पाण्डवोंके पिता थे यह आश्चर्यकी बात थी। (पक्षमें राष्ट्रको धारण करनेवाले होकर भी धर्मसे ओत-प्रोत थे। ) गन्धर्वो के लिए अधिक हर्पके देनेवाले होकर भी देवोंके लिए अधिक हर्ष देनेवाले थे यह आश्चर्यकी बात थी। पक्षमें-गन्धर्वदत्ता नामक भार्या के लिए अधिक हर्ष देनेवाले होकर भी सुदर्शन नामक देवके लिए अधिक हर्षके देनेवाले थे । और महिषी-- भैंससे उत्पन्न होकर भी वृषोत्पादी-बैलको उत्पन्न करनेवाले थे । यह आश्चर्य की बात थी । पक्षमें-महिषी विजया रानीसे उत्पन्न होकर भी वृषोत्पादी--धर्म उत्पन्न करनेवाले थे।
जीवन्धररूपी चन्द्रमाका शरीर यद्यपि लक्ष्मणा-कलङ्कसे अञ्चित था तो भी निर्मल थाउज्ज्वल था यह आश्चर्यकी बात थी। पक्षमें-उनका शरीर लक्ष्मणा नामक भार्यासे अथवा सामुद्रिक शास्त्रमें प्रणीत उत्तम चिह्नोंसे युक्त होकर भी निर्मल था-निर्दोष था। इसी प्रकार वे कुबलयाह्लादी-नील कमलोंके आह्लादक होकर भी पद्मानन्दी--कमलोंको आनन्दित करनेवाले थे। पक्षमें-पृथिवीमण्डलको आनन्ददायी होकर भी लक्ष्मीको आनन्द देनेवाले थे ॥३॥
किसी समय राजा जीवन्धरने शिल्प-शास्त्रके पारगामी कारीगरोंके द्वारा जिनेन्द्र भगवान् का एक ऐसा मन्दिर बनवाया जो कि महामूल्य अनेक प्रकारके रत्नोंकी राशियोंकी उत्तम कान्तिसे युक्त था, समस्त भव्य जीवोंको आनन्द उत्पन्न करनेवाला था, देवोंके नेत्रोंकी तृप्तिको पूर्ण करने वाला नहीं था अर्थात् जिसे देखते हुए देव लोग कभी अघाते ही नहीं थे, और जो अकृत्रिम चैत्यालयके समान जान पड़ता था। उस मन्दिर में भगवान्के नित्योत्सव, तथा पक्षोत्सव आदि प्रमुख उत्सवोंकी परम्परा निरन्तर जारी रही आवे इसके लिए, शत्रुओंको नष्ट करनेवाले, समस्त गुणोंसे सुन्दर तथा साक्षात् कामदेवकी तुलना करनेवाले जीवन्धर स्वामी जब उस व्यवस्थाके