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प्रमेय द्योतिका टीका प्र. ३६.८ स्तपृ. घनोदध्यादनां तिर्यग्वाहत्यम्
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प्रभायाः पृथिव्याः 'घनोदधिव्यरस' छ जोयण बालास' षड्योज्न बाल्यश्य 'खेतच्छेएण छिज्जमाणरस' क्षेत्रच्छेदेन छिद्यमानस्य 'अस्थि दव्वाई' सन्तिद्रव्याणि 'वण्णओ काल जाव' वर्णतः काल यादव वर्णतः कालनीललोहितद्दारिद्र शुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्धानि दुरभिगन्धानि रसतः वितकटुकषायाम्ल मधुराणि स्पर्शतः वर्कश पदुकगुरुकधुक शीतोष्ण स्निग्धरूक्षाणि, संस्थानतः परिमण्डल्वृत्तः यत्र चतुरस्त्रायातसंस्थानपरिणतानि अन्योन्यबद्धानि अन्योन्य स्पृष्टानि अन्योन्यावगाढानि अन्योन्यरनेप्रतिवद्धानि अन्योन्य घटवया द्रव्य है यह बात प्रकट करते हैं- 'हमीले णं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो घनोदधि बलम है कि जिसकी 'छतोयण
tears' छ योजन की मोटाई है क्षेत्रच्छेद से विभाग करने पर तगत द्रव्य 'वण्णओ काल जाव' क्या वर्ण की अपेक्षा कृष्ण वर्ण वाले नील वर्ण वाले, लोहित - लाल वर्ण वाले, पीले वर्ण वाले और शुक्ल वर्ण वाले होते हैं ? गन्ध की अपेक्षा के सुरभि दुरभिगन्ध वाले होते हैं ? रस की अपेक्षा तिक्त, कडु, कषाय, अम्ल एवं मधुर रस वाले होते हैं ? स्पर्श की अपेक्षा वे कर्कश, मृदुक, गुरुरु, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध, और ख्क्ष स्पर्श वाले होते हैं क्या ? तथा संस्थान की अपेक्षा वे परिमंडल वृत्त पत्र चतुरस्र आयत संस्थान वाले होते हैं क्या? ये द्रव्य अन्योन्य षद्ध होते हैं क्या ? अन्योन्य स्पृष्ट होते हैं क्या ? अन्योन्य अवगाढ होते हैं ? स्नेह गुण से अन्योन्य बद्ध होते हैं क्या ? तथा वे अविभक्त होकर ये अन्योन्य घन - समुदाय रूप
वलय हे, } ? 'छजोयण बाहरलस्' छ योन्दननो विशाल छे. तेना क्षेत्र छेथी विभाग श्वामां आवे तो तेमां रडेस द्रव्य 'वण्णओ काल जाव' વની અપેક્ષથી કૃષ્ણવણુ વાળુ' પીળાવ વાળુ અને શુકલનામ સફેદ વણુ વાળુ હાય છે ? ગધની અપેક્ષાથી સુરભિ દુરભિ ગંધવાળુ હાય છે ? રસની અપેક્ષાથી તે તીખુ, કડવુ' તુરૂ, ખાટું, અને મીઠારસવાળુ હાય છે ? પની अपेक्षाथी ते हुश, भृड, गु३, मधु, शीत उष्णु, स्निग्ध अने ३क्ष स्पर्शवाणु હાય છે ? તથા સસ્થાનની અપેક્ષાથી તે પમિડલ ગેળ ઝાલરાકાર ચતુરસ, આયત સંસ્થાનવાળુ' હાય છે ? આ દ્રબ્યા અચૈન્ય અદ્ધ હૈાય છે ? અન્યેાન્ય સૃષ્ટ હાય છે ? અસૈન્ય અવગાઢ વાળું હાય છે ? સ્નેહગુગ્રંથી અન્યેાન્ય બદ્ધ હૈાય છે? તથા પરસ્પરમાં અવિભક્ત થઈને આ અન્યાન્ય ઘન સમુદાયાથી મળેલું રહે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને
ત્ર્યસ