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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.८ सप्तपृ. घनोदध्यादीनां तिर्यग्वाहल्यम् वातस्य३ च बाहल्यमाणं भवति, तथाहि-रत्नप्रभापृथिव्यां घनोदधेनोहल्यम् 'छच्चे' षड्योजनानि१, धनवातस्य 'अद्ध पंचम' अर्द्धपश्चमानि-साद्ध चतुर्योंजनानि बाहल्यम्२, तनुवातस्य बाहल्यम् 'जोयणसङ्घ' अईयोजनेन सहित मेकं योजनम्-षट्कोशा नित्यर्थः, एतदरस्लपमा पृथिवीगत घनोदधिधनबात-तनुवातबाहल्यानां तत्तत्प्रमाणमादिध्रुवं परिकल्याग्रेऽधोऽधः शर्कराप्रभादि सर्वपृथिवीना पूर्व पूर्व पृथिवीगत घनोदध्यादि बाइल्यममाणेऽत्रामस्थित गाथोक्तप्रमाणं क्रमशः प्रक्षिप्याग्रेऽग्रे स्थित पृथिवीगत घनोदध्यादि बाइल्यमाणं कर्त्तव्यम् ॥१॥ तदेव प्रक्षेप्य प्रमाणं द्वितीयनाथया प्रदर्शयति-'सति भाग' इत्यादि, रत्नप्रभा पृथिवीगत घनोदधि बादल्यममाणे 'लतिभाग लत्रिभागमिति योजनस्य तृतीयं योजन का है ? घनवात के बाहल्थ का प्रमाण 'अद्धपंचम' साढे चार योजन का है।२। और तनुपात का प्रमाण 'जोयणसड़े डेढ योजन अर्थात् छह कोश का है।३। इन घनोदधि-घनवात-तनुवात के बाहल्य का जो प्रमाण है उसको आदि ध्रुव-मुख्य-मानकर आगे आगे नीचे नीचे की शर्करा प्रभा आदि अधः सप्तमी पर्यन्त पृथिवीयों में पूर्व पूर्व पृथिवी गत घनोदधि आदि के बाहल्य प्रमाण में इस आगे कहे जाने वाली गाथा में कहे हुए प्रमाण को क्रम ले घनोदधि आदि के थाहल्य प्रमाण में मिला मिलाकर आगे आगे की पृथिवी स्थित घनोदधि आदि का बाहल्य प्रमाण कर लेना चाहिये ॥१॥ अघ दूसरीगाथा से वही मिलाने योग्य प्रमाण को दिखलाते हैं-'लतिभाग' इत्यादि। रत्न पभा पृथिवी के धनोदधि बाहल्य के प्रमाण में 'सतिभाग
यु छे. धनपातन माडल्यनु प्रभा 'अद्धपचम' सा यार यो ननु ' छे, २, भने तनुवात प्रभार 'जोयणसड्ढे' 316 याननु अर्थात छ पर्नु છે. આ ઘોદધિ ઘનવાત, તનુવાતના બાહ"નું જે પ્રમાણ છે તેને આદિ યુવમુખ્ય માનીને આગળ આગળ નીચે નીચેની શર્કરામભા પૃથ્વી વિગેરે અધઃ સપ્તમી પૃથ્વી પર્વતની પૃથ્વીમાં પહેલી પહેલી પૃથ્વીમાં રહેલ ઘોદધિ વિગેરેના બહત્યના પ્રમાણમાં આ આગળ કહેવામાં આવનારી ગાથામાં કહેવામાં આવેલ પ્રમાણુને કમથી ઘોદધિ વગેરેના બાહલ્ય પ્રમાણમાં મેળવીને પછી પછીની પૃથ્વીમાં રહેલ ઘને દધિ વિગેરેના બાહત્યનું પ્રમાણ કહેવું જોઈએ. ૧ છે
वे भी गाथामाथी से भqan anय प्रभा मताव छ. 'सतिभाग त्यादि २त्नप्रसा पूवान धना मायना प्रभारमा 'सतिमाग'