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प्रमेयधोतिका टीका प्र.उ.३ सु.५३ पनषण्डादिकवर्णनम् ___ ८४ जुगलिया णिच्चविणमिया णिच पणमिया णिच्च कुसुमिय मउलिय लवइय थवईय गुम्मिय गोच्छिय जमलिय जुगलिय विणसिय घणमिय सुविभत्त पंडिमंजरिवाडिसगधरा' नित्यं कुसुमिता नित्यं मुकुलिता नित्यं पल्लविताः नित्यं स्तबकिता नित्यं गुल्मिता नित्यं गुच्छिता नित्यं यमलिता नित्यं युगलिता नित्यं विनमिता नित्यं मणमिता नित्यं कुसुमितसुकुलित पल्लवित स्तचकित गुलिमत गुच्छित यमलितयुगलितविनत प्रणतमुविभक्तपिण्डमजयंवतंसकधराः, इतिच्छाया।
व्याख्यातपूर्वमिदं प्रकरणम् एतस्य व्याख्यानं पूचनदेव ज्ञातव्यम् । तया'मुयवरहिणमयणसलागाकोइलकोरगभिंगारगोडलग जीवंजीवगणंदिमुहकविळपिंगलक्खकारंडवचक्कवागकलहंगसारसाणेगसउणगणमिणविचारियस दुन्नइयनिच्च विणमिया, निच्चं पणभिया' ये वृक्ष लदा कुसुमित रहते है नित्य मुकुलित रहते है, नित्यपल्लवित रहते है निस्य स्तषकित रहते है नित्य गुलिमत रहते है नित्य गुच्छित रहते है नित्य यलिम रहते है। नित्य युगलित रहते है नित्य विनमित रहते है एवं निस्य प्रणमित रहते है इस तरह से नित्यकुसुमित, मुकुलित पल्लवित, स्तनकित गुल्मित गुच्छित्त यमलित युगलित विनमित एवं प्रणमित बने हुए ये वृक्ष सुविभक्त पिण्डवाली मंजरीरूप अवतंसक को धारण किये रहते है इन पदों का अर्थ पूर्व प्रकरण में व्याख्यात हो चूका है। 'सुयपरहिण मयणसलामा कोहलकोरण-शुक्रबहिण मदन शलाका कोकिलकोरक' इत्यादि, इन वृक्षों के उपर शुक के जोडे मयूरों के जोडे, मदनशलाका-मेना के जोडे, कोकिल के जोडे, चवाफ के जोडे, कलहंस के जोडे, सारल के जोडे, इत्यादि अनेक पक्षियों मिया' २॥ वृक्ष यम सुमित रहे छे. नित्य भुलित २९ छ, नित्य પલ્લવિત રહે છે, નિત્ય સ્તબકિત રહે છે નિત્ય ગુમિત રહે છે, નિત્ય મુચ્છિત રહે છે. નિત્ય યમલિત રહે છે. નિત્ય યુગલિત રહે છે. નિત્ય વિનમિત રહે છે. અને નિત્ય પ્રસુમિત રહે છે આ રીતે નિત્ય
सुमित, मुसित, सवित, स्तमति, गुमित गुरिछत, यमलित, યુગલિત; વિનમિત, તેમજ પ્રસુમિત બનેલા આ વૃક્ષે સુવિભકત પિંડવાળી મ જરી રૂપ અવતંસક-વસ્ત્રને ધારણ કરીને રહે છે. આ શબ્દોનો અર્થ पा सूत्रमा मतावामां मावी गये छे. 'सुयवरहिण मयणस लागा कोहल कारग सुकबरहिण मदनसलाका कोकिल कोरक' छत्याहिये वृक्षानी ५२ શુકના જોડલા, મયુરોના જોડલા, મદનશલાકા–મેનાના ડલા કોયલના જોડલા, ચકલાકના જોડલા, કલહંસના જેડલા સારસના જોડલા વિગેરે અનેક પ્રકારના