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________________ ergom - प्रमेयधोतिका सीका प्र.३ उ.३ खू.४८ नागकुमाराणां भवनादिद्वारनिरूपणम् ७५९ पन्नत्तायो' षष्टिः सहस्राणि-पष्टिसहस्रपरिमिता देवा भवन्तीति, बाहिरिचाए परिसाए' बाह्य यां पर्षदि 'सत्तरि दे साहस्पीभो पन्नताओ' सप्तति देनमा स्त्राणि प्रज्ञप्तानि, ज्या-'अभिरिमाए परिसाए' आभ्यन्तरिका समिताभिधानाणं पपदि दो पणवीसं देविसयाण पन्नता' पञ्चविंशे-पश्चविंशत्यधि के द्वे देवीश ते प्रज्ञप्ते-कथिते 'मझिविवाह परिमार' माध्यमिक्षायां पर्षदि 'दो देविमया पन्नत्ता' परिपूर्णे द्वे देवीशने प्रज्ञप्ने, तथा-'बाहिरियाए परिसाए' वाह्या पर्षदि 'एणसत्तरं देविसर पनत्तं पश्च सप्तं-१ञ्च सप्तत्यधिक देवीशतं शज्ञप्तमिति । __ भूतानन्दीय पर्षत् स्थित दे देनां स्थितिमानं दर्शयि प्रश्न यन्नाह-धृयादस्स' इत्यादि, 'भूपागदमण भने' भूनानन्दम खलु भइन्त ! 'नागकुमारि दस्स नागकुमाररन्नो' नागकुवारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य 'अभिवरियाएपरिसाए' आभ्यन्तरिकायां पर्पदि देवाण केवायं कालं ठिई पन्नत्ता' देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथिता. 'जाव' यावत् माध्यमिकानों पर्पदि देवाना कियन्तं स्सीओ पन्नताओ' ६० हजार देख कहे गये हैं 'बाहिरियाए परिलाए' बाह्य परिषदा में 'सत्तरदेवशाहरूसीओ पन्नताओ' ७० सत्तर हजार देव कहे गये हैं । तथा-'अभिमरियाए परिसाए' आभ्यन्तर परिषदा में 'दोपण्णवीसं देविलवाणं एन्नत्ता' २२५ देवियां कही गई । 'मज्झिमि. याए परिसाए दो देविसया पन्नत्ता' परिषदा में दो सौ देवि कही गई है 'बाहिरियाए परिसाए पण्णसत्तरं देविलयं पन्नत' पाह्य परिषदा में २२५ देवियां की गई है भूनानन्द की परिषदास्थित देव देवियों की स्थिति काल का कथन करते हैं। 'भूतानंदस्मण भंते' नामकुमारिंदम्स नागकुमाररन्नो अभितरियोए परिसाए देवाणं केवइयं कालंठिई पन्नत्ता' हे भवन्त ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूनानन्द की आभ्यन्तर परि५०००० ५यास १२ । सो छे मध्यम परिषामा 'सटि देवसाहस्सीओ पत्नत्ताओं' १०००० मा १२ वा द्या. 'बाहिरियाए परिसाए' मा परिषामा 'सत्तरि देव साहस्सीओ पन्नत्ताओ' ७०००० सित नरहे। जहा. तथा 'अभितरियाए परिमाए' मान्यत२ परिषामा 'दो पण्णवीस देविसया पन्नत्ता' २२५ से। पयास वियो डस छे. 'मज्झिमियाए परिसाए दो देविमण पन्नत्ता' मध्यमा परिषदमा २०० असे क्यिा ४ 'बाहिरियाए परिसाए पण्णत्तर देविसय पण्णत्त' या परिषामा १२५ मे से ५यास हेवियो । હવે ભૂતાનંદની પરિષદમાં કહેલ દેવ દેવિની સ્થિતિ નું કથન ४२वामां आवे छे. 'भूतानंदस्स ण भते । नागकुमारिदम्स नागकुमारण्णो भभितरियार परिसाए देवाणं केवइय काल ठिई पप्णचा' भगवन् नागाभा
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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