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________________ ७५२ % 3D जीवामिगमस्त्रे संख्यकाः पर्पद:-सभाः प्रज्ञप्ता:-ऋथिता इति १३, भगवानाड-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा !' हे गौतम ! तिन्नि परिसाओ पण्णत्ताओ' तिस्रः एपंदा, पज्ञप्ताः, 'ताओ चेव जहा चमरम्स' ता एक परिपदो यथा चमरस्य, यथा चमरेन्द्रस्य, तिस्त्र : पर्पद: कथित रतया धरेन्द्रस्यापि समिता चण्डा जाता, आभ्यन्तरिका समिता, माध्यमिशा चण्डा, बाया जाता, एवं रूपेण तिम. पर्प दो धरणेन्द्रस्यापि ज्ञाव्य इति । 'धरणलणं भंते धरणस्य खल्ल भदन्त ! 'नाग कुमारिदस्स नागनुपाररन्नो' ना कुमारेन्द्रस्व नामकुमारराजस्य अपितरियाए परिमाए कइ देवसहपा (मत्ता' अतिरिमार्ग प्रथमार्ग पर्पदि कति देवसहस्राणि घशमानि-कथिनागि जान वाहिरिया परिसाए कह देनीया पणत्ता' याग्द् वाह्यायां पर्पदि वति देवीगतानि मज्ञप्तानि, अत्र यात्पदसंग्राह्यपाठ स्यार्थों यथा धरणेन्द्रस्य माध्यामिकायां द्वितीयस्यां पर्षदि कति देवसहस्राणि प्रज्ञानि, वाह्यायां पर्षदि कहि देवमहाणि प्रज्ञप्तानि, आम्पन्तरिकायां पर्ष दि षदाएं कही गई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं । 'गोयमा ! 'तिणि परिसाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! नागकुमारों के इन्द्र और नागकुमारों के राजा धरण की तीन परिषदा कही गई है 'ताओचेर जहा चमरस्स उनके नाम वही है जो चनर इन्द्र की परिपदा के हैं। 'धरणस्म णं भंते । णागकुमाग्दिम्य पागकुमाररणो भितरिचाए परिसाए पति देवस हस्सा पण्णत्ता' हे भदन्त । नागकुमारेन्द्र नामकुमार राज धरण की आभ्यन्तर सभा में दिलने हजार देव हैं ? 'जाय बाहिरियाए परिसाए कति देवी सया पगत्ता' यावत् बाह्या परिषदा में कितनी सौ देवियां हैं ? यहां धावत् शब्द से ऐमा पाठ गृहीत हुआ है कि-धरण के मध्यम पण्णत्ताओ' से लगन् नागभारे ना ४ भने नागभाराना रात ५२नी કેટલી પરિષદાઓ કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'गोयमा । तिणि परिसाओ पण्णताओ' हे गौतम! नागमा। । ईन्द्र भने नागभाना २१ ५२६ नी वन परिषदासाहेस छे. 'ताओ चेव जहा चमरस्स' तेना नाम यमर छन्द्रनी परिषदाना नामी प्रमाणे या धरणस्स गंभ ते ! णागकुमारी दस्त नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता' હે ભગવન નાગકુમારે નાગકુમાર રાજ ધરણની આ ન્સર સભામાં કેટલા डलर १३ ? 'जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवी सया पण्णत्ता' यावत् બાહા પરિષદામાં કેટલા સે દેવિ કહેલ છે? અહી યાં યાવત્ પદથી એ પાઠ ગ્રહણ કરાવે છે કે દર ગની મધ્યમ પરિષદામાં કેટલા હજાર દે છે ? બાહ્ય સભામાં કેટલા હજાર દે છે? આભ્યન્તર સભામાં કેટલા સે દેવિયે
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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