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जीवामिगमसूत्रे
प्रज्ञापनायाः प्रथमे पदे कथितं यावत्पश्चभिरुत्तरकुरुभिरिति-अकर्मभूमक मनुव्याणां वर्णनं कृतं तदनुसारेणैवात्र ज्ञातव्यम् ।
अकर्मभूमकमनुष्यान् निरूप्य कर्मभूमकान्निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - 'से किं तं' इत्यादि, 'से किं तं कम्मा' अथ के ते कर्मभूमकाः, कर्मभूमका मनुष्याः कियन्तो भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'कम्मभूमगा मणुस्सा पण्णरसविहा पन्नता' कर्मभूमकाः कर्मभूमिषु समुत्पन्ना मनुष्याः पञ्चदशविधा :- 'पंचदशमकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः, 'तं जहा ' तद्यथा पंचहि भरहेहिं' पञ्चभिर्भरते: 'पंचहि एरवएहिं' पञ्चभिरैरवतैः 'पंचहि महाविदेहेर्हि' पञ्चभिर्महाविदेहैः तथा च पञ्च
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पांच हैरण्यवत पांच हरिवर्ष क्षेत्र के मनुष्य पांच रम्यक क्षेत्र के मनुध्य और पांच देवकुरु के मनुष्य और पांच उत्तरकुरु के मनुष्य इस प्रकार से ढाई द्वीप में ये तीस भोगभूमियां प्रकर्मभूमियां है। इन अकर्मभूमियों में जो उत्पन्न हुए मनुष्य है वे अकर्मभूमक मनुष्य कह लाते हैं। और इन्हें इली से तीस प्रकार के कहा गया है 'से त्तं अक
भूमगा' इस प्रकार से अकर्मभूमकों के सम्बन्ध में यह कथन किया गया है इनका विस्तृत कथन प्रज्ञापना पद में प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में हुआ है अतः वहीं से यह विषय जिज्ञासुओं को जान लेनाचाहिये । 'से किं तं कम्मभूमगा' हे भदन्त । कर्मभूमक मनुष्य कितने प्रकार के है इसके उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी को कहते है-हे गौतम! कर्मभूमक मनुष्य 'पण्णरस विहा पण्णत्ता' पन्द्रह प्रकार के कहे गये है 'तं जहा ' जैसे- 'पंचहि भर हेहिं पंचहिं एरवएहिं पंचहि महाविदेहेहिं' पाँच भरत
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कुरुद्दि" पांथ अारना हैरएयवत क्षेत्रना मनुष्य यांय अारना हरिवर्ष क्षेत्रना મનુષ્ય પાંચ પ્રકારના રમ્યકક્ષેત્રના મનુષ્ય અને પાંચ પ્રકારના દેવકુરૂના મનુષ્યા અને પાંચ ઉત્તરકુરૂના મનુષ્ય આ રીતે અઢાઇ દ્વીપમાં આ ત્રીસ ભાગભૂમિ અકમ ભૂમિ છે. આ કમ ભૂમિયામાં ઉત્પન્ન થયેલા જે મનુષ્યેા છે, તેએ અક ભ્રમક મનુષ્યા કહેવાય છે. અને તે બધા મળીને ત્રીસ પ્રકારના अहेवामां आवे छे. 'से त्तं अकम्मभूमगा' या रीते अम्भ भूमियाना सभधभां કથન કરવામાં આવેલ છે. આનુ સવિસ્તર કથન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના પ્રજ્ઞાપના પદમાં કરવામાં આવેલ છે. તેથી જીજ્ઞાસુઓએ તે ખધુ ત્યાંથી જાણી લેવું
'से किं तं कम्मभूमगा' हे भगवन् उर्भ भूमिना मनुष्यो डेंटला अहारना उद्या છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે હું ગૌતમ ! ક્રર્મોभूभिना मनुष्ये। 'पन्नरस विद्या पण्णत्ता' यन्नर अारना डेवामां आवे छे. 'त' जहा' ते भा प्रभा] लघुवा भई 'प'चहि' भरहेहि, पंचहि एवएहि, पचहिं