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________________ - - - - ६७ जीवामिगम चउम्मुहमहापहपहेसु' श्रृङ्गाट कत्रिकचतुष्कचत्वरचतुर्मुखमहापथपथेषु 'नगरणिद्धमणमुसाणगिरिकंदरसंतिसेलोवठ्ठाण भवणगिहेसु' नगरनिधमनशमशानगिरिकन्दरसच्छे कोपस्थानभवनगृहेपु. हिरण्यसुवर्णादिबहुमत्पद्रयाणि 'संनिक्खित्ताई चिट्ठति' सन्निक्षिप्तानि तिष्ठन्ति किम् ? इति प्रश्ना, भगवानाइ -'णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः नैतानि अय आफरादीनि एकोरुक द्वीपे भवन्तीति भावः । एकोरुकमनुनानां स्थिति दर्शयितुं प्रश्नन्नाह-'एगोरुयदीवे गं' इत्यादि, 'एगुरुयदीवे णं भंते ! दीवे' एकोरुकद्वीपे खलु भदन्त । द्वीपे 'मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता ?' मनुमानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्ने] पलिओवमस्स असंखेज्जह भाग असंखेज्जइमागेण ऊगर्ग' जघन्येन पल्योपमस्यासंख्येयभागम् मार्ग वाले रास्ते हैं 'चक' चार मार्ग वाले रास्ते है। चत्वर चतुर्मुख मार्ग है और महापय रूप भार्ग है। उनमें एवं 'णगर णिद्धमणसुसाण. गिरिकंदरसेलोवट्ठाण भवणगिहेसु' नगर की नाली गटर में श्मशानों में गिरि एवं गिरि की कन्दराओं में ऊंचे पर्वत इत्यादि स्थानों में 'सनिक्खित्ताई चिटुंति' द्रव्य गड़ा हुआ होता है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते है-हे गौतम ! 'णो इणढे समढे' यह अर्थ समर्थ नही है-अर्थात् पूर्वोक्त प्रश्न की विषय भून कोई भी वान वहां नहीं होती है और न ग्रोमादिकों में कहीं पर भी घन गड़ा हुआ रहता है। __ अव सूत्रकार एकशेरुक द्वीप के मनुष्यों की स्थिति कहते हैं-'एगोरुय दीवेणं भंते दीवे मणुयाणं केवतियं कालंठिई पण्णत्ता' हे भदन्न एके रुक 'छीप के मनुव्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में छ, 'तिग चउकचच्चर च उम्मुहमहापहेसु' ४ि मा वाणा २२तामा हाय છે. ચાર માર્ગવાળા રસ્તા છે. ચવર ચાર રસ્તા ભેગા થતા હય તે ચેક तथा मा५५ ३५ भागभा तथा ‘णगरणिद्धमणमुसाणगिरि कंदरसेलोवट्ठाण भवणगिहेसु' नानी ना ४२मा स्मशानामा ५त मे ५'तानी शुशम्मामा या ५त विशेष स्थानमा 'सनिविखचाई चिट्ठति' हटाये धन डाय छ मा प्रशन उत्तरमा प्रमुश्री गौतमसाभार ४ छे 'णों इणठे सम है ગૌતમ ! આ અર્થ બરાબર નથી. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત પ્રશ્ન સંબંધી કોઈ પણ વાત ત્યાં હતી નથી. તેમજ ગામો વિગેરેમાં કયાંય પણ ધનદટાયેલું હોતું નથી હવે સૂત્રકાર એ રૂક દ્વીપના મનુષ્યની સ્થિતિનું વર્ણન કરે છે. 'एगोरुयदीवणं भते । दीवे मणुयाण' केवतिय काल ठिई पण्णत्ता' भगवन् એકરૂક દ્વીપના મનની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવી છે
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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