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________________ - प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ .३६ एकोरुकद्वीपस्थितद्रुमगणवर्णनम् ५५५ पासायाकासतलमंडव एगसाल विसाल तिसालग चउरं स चउमाल गमघरमोहण घरवल भिघर चित्तसालमालयभत्तिघरवतंस चतुरंसणंदियावत्तसं ठयायय पंडुर. तल मुंडमाल इम्मियं' माकाराहालक चरिकद्वारगोपुर प्रासादाकाश्तल माडपैकशाल द्विशालक विशालक चतुरस्र चतुशालगर्भगृह मोहनगृहनलमीगृह चित्र शालमालकभक्तिगृह वृत्तव्यस्र नन्दिकावर्त संस्थितायत पाण्डुतलमुण्डमालहम्, तत्र माकारो वमः, अट्टालका-प्रासादोपरिवाश्रयविशेषः, चरिकानगर पाका. रान्तमूले अष्टहस्तममाणो मार्गः, द्वारं स्पष्टम्, गोपुरं पुरद्वारम्, प्रासादः मसिद्धः परियदार गोपुर पासायाकास तल मंडव एग साल विलालगतिलाल गचउरंस च उसाल गम घर मोहण घर वलभिघर चित्तलाल मालयभत्ति घर वट्टतंसचतुरंसणंदियावत्त संठियायत पंडुरतल मुंड माल हम्मियं' जिस प्रकार से संसार में प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, प्रासाद, आकाशतल, मंडप, एकशाल, द्विशाल, त्रिशाल, चतु रन, चतुःशाल गर्भगृह, मोहन गृह, बलभी गृह, चित्रशाल मालक भक्ति गृह, वृत्त, वस्त्र, चतुरस्त्र, नंदिका वत्त, संस्थितायत पाण्डुरतल मुण्डमाल हH, इनमें कोट का नाम प्राकार हैं जो नगर या राजमहल के चारों ओर होता है प्रासाद के ऊपर जो आश्रम विशेष होता है उसका नाम अट्टालक है इले आजकल की भाषा में अटारी नाम से कहा जाता है नगर और प्राकार के बीच में जो आठ हाथ प्रमाण रास्ता रहता है उसका नाम चरिका है । दरवाजे का नाम द्वार है नगर के प्रधान द्वार का नाम गोपुर है राजमहल का नाम प्रासाद है शिलकुल कासतलम डव एगसाल विसालगतिसालगचउरसच उसालगभघरमोहणघर वळभिघर चित्तसाल मालय भत्तिधर वट्ट तस चउरस गंदियावत्तसठिया यतपंडुरतलमुंडमालाहम्मिय' हे प्रमाणे अगत्मा प्रा१२, भट्टीत४, यति, दार, गोपुर, प्रासाह, शत, भ७५, ४, विशाल, त्रिa, ચતુરન્સ, ચતુશાલ, ગર્ભગૃહ, મોહનગૃહ, વલભીગૃહ, ચિત્રશાલ માલક, मति, वृत्त, २५स, यतुरन, न त', सस्थितायत, पाडतल, મુડમ લહમ્મ, તેમાં કેટનું નામ પ્રાસાદ છે કે જે નગર અથવા રાજમહેલની ચારે તરફ હોય છે. પ્રાસાદની ઉપર જે આશ્રય વિશેષ હોય છે. તેનું નામ અદ્યાલક છે. તેને હાલની ભાષામાં અટારી કહેવામાં આવે છે. નગર અને પ્રકારની વચમાં આઠ હાથ પ્રમાણને જે રસ્તે રાખવામાં આવે છે, તેનું નામ ચરિકા છે. દરવાજાનું નામ દ્વાર છે. નગરના મુખ્ય દરવાજાનું નામ ગેપુર છે.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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