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________________ 48 fterभिगमसूत्रे शिल्पिना - परमर क्षेण कळावता विभागरचितेल- विभक्तिपूर्वक कृतेन 'सव्वओ 'चैव समनुषधे' सर्वः सर्वासु विक्षु समनुवदधम् 'पविरललंयंत विप्पडडेहिं ' प्रविरल - मानविप्रकृष्टैः वत्र मविरलैः पृथक् पृथक् भूतैर्लम्माः तत्र प्रवि एलत्वं मनागपि असंहतत्त्रमात्रेण भवति, तो विप्रकृष्ट प्रतिपादनायाह-त्रिमं कुष्टैर्महदन्तराः 'पंच वण्णेहिं पञ्चवर्णै:- काळनीलादिविशिष्टेः 'कुसुमदामेहिं' कुसुग्दामभिः - पुष्पमालाभिः 'सोभमाणेहि' शोभमानैः सुन्दरैस्तैः 'सोममाणे' शोभमानम् 'वर्णमालकगए चैव दिपमाणे' वनमाला वन्दनमाला कृता अग्र भागे यस्य तत् वनमालकृताग्रम् तथाभूतं संदीप्यमानम् अतिशयेन शोभमानं भवति । तत्र ते चित्तंगया वि दुमगणा' तथैव प्रेक्षागृहमिव ते चित्राङ्गका अपि गंधी गई होती है पूरित किसी आकृति विशेष के छिद्रों में पुष्पों को भर भर कर चतुराई के साथ की गई होनी है और संघातिमपुष्पों के वृन्द जिसमें एक दूसरे पुष्पों के वृन्दों के साथ संघातित कर मिलाकर गूंथे गये होती है. ऐसी ग्रन्थित, वेष्टित, पूरित और संघातिम के भेद से मालाएं चार प्रकार की होती है-सो चतुर कारीगर के द्वारा गंधी गई ये चारों प्रकार की मालाएं जिसमें बड़ी ही चतुराई के साथ सजाकर मत्र ओर रखी गई हों और इनके द्वारा जिसकी सौन्दर्य वृद्धि में अधिकता आगई हो' तथा 'पविरललंयत विप्पट्टे हिं' अलग अलग रूप से दूर-दूर पर लटकती हुई ऐसी 'पंचवण्णेहिं' पांच वर्णो वाली 'सोममाणेहिं' सुन्दर फूल मालाओं से 'सोभमाणे' शोभायमान 'वणमालयग्गए' जो विशेष रूप से सजाया गया हो तथा अग्रभाग में लटकाई गई वनमाला से जो विशेष रूप से चमक रहा हो तो ऐसा वह प्रेक्षा गृह जितना अधिक शोभा की वृद्धि से जो शोभा का do ભરી ભરીને ચતુરાઈપૂર્વક કરવામાં આવેલ હાય છે . અને સંઘાતિમ પૂષ્પાના સમૂહ જેમાં એક બીજા પુષ્પાના સમૂહની સાથે સાતિમ કરીને અર્થાત્ भेजवीने शूथैव होय छे. सेवी प्रथित, वेष्टित, पूरित, मने सधतिभना ભેદથી ચાર પ્રકારની માળાએ હાય છે. ચતુર કારિગર દ્વારા ગૂચવામાં આવેલ આ ચારે પ્રકારની માળાએ કે જેમાં ઘણીજ ચતુરાઈની સાથે સમજાવીને બધી તરફ રાખવામાં આવેલ હાય, અને તેના દ્વારા જેના સૌદય વૃદ્ધિમાં વધારો थयेस डाय तथा 'पविरलल'ब' व विप्पट्टे हि अलग अलग ३ये दूर दूर सरगुती मेवी 'प'चवण्णेहिं' यांथ वर्षावाणी सुन्दर सभासाथ 'सोभमाणे' शोभायभान 'वणमालयग्गए' ने विशेष ३५थी सन्भववामां आवे हाय, तथा અગ્રભાગમાં લટકાવવામાં આવેલ તારણથી પણ જે વિશેષ પ્રકારથી ચમકી રહેલ
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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